फुर्सत के कुछ लम्हों में
मन करता चिंतन मनन
रिश्तों ने जकड़ा पाश में
अवरुद्ध किया है दूर गमन
क्या ही अच्छा रहता
स्वछंद विचरता हर प्राणी
भूख नहीं न भूखा होता
याचक नहीं न रहता दानी
भौतिक सुख के उपादान
संचय क्या करता हठी
नचा रहा सुर सुन्दर गान
ऊँगली पर अपनी सदा नटी
कच्चे धागे से बंध आये
द्रौपदी की लाज बचाने
रेशम डोर से न बच पाए
चाहे व्यस्त हों रास रचाने
ममता का अदृश्य बंधन
जग में सबसे हुआ महान
रिश्तों का महीन मंथन
सब सुखों की बना खदान
नाता एक अनोखा सा
मानवता से मानव का
पशु पक्षियों को भाता सा
करुणा ममता और दया का
कुछ विचित्र सा सम्मोहन
कविता का है भावों से
शब्दों का सजा के तोरण
लयबद्ध रागमय छंदों से.
नाता एक अनोखा सा
ReplyDeleteमानवता से मानव का
पशु पक्षियों को भाता सा
करुणा ममता और दया का
बहुत सुंदर रचना
कल 13/04/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
शान्त क्षणों में मन का चिन्तन कुछ उद्वेलित कर जाता है।
ReplyDeleteपिछले कुछ दिनों से अधिक व्यस्त रहा इसलिए आपके ब्लॉग पर आने में देरी के लिए क्षमा चाहता हूँ...
ReplyDelete....... बहुत ही सुखद कविता....सुकून पहुंचाने वाली...रचना के लिए बधाई स्वीकारें...!!!
Maine tootte,bikharte rishon ka itna dard jhela hai ki,samajh me nahee aa raha kya tippanee dun!
ReplyDeleteफुर्सत के कुछ लम्हों में
ReplyDeleteमन करता चिंतन मनन
रिश्तों ने जकड़ा पाश में
अवरुद्ध किया है दूर गमन....बहुत खुबसूरत रचना अभिवयक्ति.........
एक भावपूर्ण रचना |
ReplyDeleteआशा
खूबसूरत भावाभिव्यक्ति
ReplyDeleteकुछ विचित्र सा सम्मोहन
कविता का है भावों से
शब्दों का सजा के तोरण
लयबद्ध रागमय छंदों से......वाह वाह
...बहुत दिनों बाद आपकी कोई कविता आई है.. सुन्दर रचना है... रिश्तो को समझने और संजोने में आपकी कविता मदद करेगी... अंतिम अनुच्छेद सबसे प्रभावी बन पड़ा है....
ReplyDeleteरिश्तों ने जकड़ा पाश में
ReplyDeleteअवरुद्ध किया है दूर गमन
क्योकि शायद यह गमन इन रिश्तों तक ही है