गायब खेतों की हरियाली
सड़कों की देखो बदहाली
उजड़ गई बरगद की छाँव
कैसे गणतंत्र मने मेरे गाँव
भूखे सोये अब भी बुधना
बच्चे मार रही कुपोषण पूतना
आस्तीन में पल रहा जब सांप
कैसे गणतंत्र मने मेरे गाँव
खेतों का लाभ ले गया बाज़ार
किसान ठगा देखता बेज़ार
बिचौलिया संस्कृति फ़ैली हर ठांव
कैसे गणतंत्र मने मेरे गाँव
दिखा क़र्ज़ का आकर्षण
छीन रहे स्वाबलंबन
आयात ने गाड़े फिर अपने पाँव
कैसे गणतंत्र मने मेरे गाँव
Aah!Phirbhee Gantantr Diwas kee aapko shubh kamnayen detee hun!
ReplyDeleteविचारणीय प्रश्न ....
ReplyDeleteबहुत खुबसूरत रचना
गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएं....!
जय हिंद...वंदे मातरम्।
सार्थक प्रश्न किया है ..
ReplyDeleteगणतंत्र दिवस की शुभकामनाएं....!
बहुत सुंदर सार्थक प्रस्तुति,भावपूर्ण रचना,..
ReplyDeleteWELCOME TO NEW POST --26 जनवरी आया है....
गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाए.....
हक़ीक़त यही है। स्वावलम्बन को गिरवी रखे भी बहुत वक्त हो गया। यह समय मूल धारा की ओर लौटने का है।
ReplyDeleteकाश कभी ये दिन बहुरेंगे,
ReplyDeleteभारीपन से हम उबरेंगे।
गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाए.....
ReplyDeleteये कैसा गणतंत्र...... जो होना था उससे कुछ उल्ट ही हुआ है.....
ReplyDeleteआपने सही तस्वीर उतारी है । अनेक गाँवों में यही हाल है । जब तक गाँ खुशहाल नही होंगे सच्चा लोकतन्त्र आ ही नही सकता
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