Monday, November 28, 2011

किताब


















किताब के पन्नों को
पलटते हुए ये ख्याल आया
यूं पलट जाए जिन्दगी
सोचकर रोमांच हो आया ।

ख्वाबों में जो बसते हैं
सम्मुख आ जाएँ तो क्या हो
किताबें सपने बेच रहीं हैं
हकीकत हो जाए तो क्या हो ।

उनका अक्स साथ लेकर
आँख है खुलती दिन ढलता
पलकें भारी होने से लेकर
रात ढले फिर दिन खुलता ।

हर पन्ने से प्यार मुझे
हर हरफ लगे उपहार मुझे
जो रहते हैं संग संग
चाहूं देना सब राग रंग ।

पढ़ना चाहूं मैं ऐसे
साँस समाई हो जैसे
हर पन्ना बने प्रेम अनुबंध
फूल और खुश्बू का सम्बन्ध ।

8 comments:

  1. Namaskar ji..

    Jeevan bhi pustak ke jaisa..
    Kai khand main banta hua..
    Sukh, dukh, preet, prem sab kuchh hi..
    Panno par hai likha hua..

    Jo sapne main, hai wo tere,
    gar, sammukh aa jayega..
    Tere tan man ko wo khud hi,,
    wohi swtah harshayega..

    Sundar bhav..

    Deepak Shukla..

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  2. हर पन्ने से प्यार मुझे
    हर हरफ लगे उपहार मुझे
    यह एहसास बना रहे!

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  3. इस पुस्तक के हर पन्ने एक धागे से जुड़े तो रहते हैं।

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  4. पढाना चाहूँ में ऐसे -----फूल और खुशबू का सम्बन्ध '
    सुन्दर पंक्तियाँ |
    कविता बहुत अच्छी और भावपूर्ण है |
    आशा

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  5. हर पन्ने से प्यार मुझे
    हर हरफ लगे उपहार मुझे
    बहुत सुन्दर...
    सादर बधाई...

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  6. आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा आज के चर्चा मंच पर भी की गई है!यदि किसी ब्लॉग की कोई पोस्ट चर्चा मे ली गई होती है तो ब्लॉगव्यवस्थापक का यह नैतिक कर्तव्य होता है कि वह उसकी सूचना सम्बन्धित ब्लॉग के स्वामी को दे दें!
    अधिक से अधिक लोग आपके ब्लॉग पर पहुँचेंगे तो चर्चा मंच का भी प्रयास सफल होगा।

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  7. बहुत ही सुन्दर रचना नए शब्दों का प्रयोग अच्छा लगा !
    प्रेरणात्मक रचना ....

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  8. Bahut achhee rachana! Par haqeeqat to ye hai,ki,kitabon ke pannon se kaheen zyada tezee se zindagee ke panne palatte hain!

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