चित्र साभार गूगल |
तुलसी सूरज की आग तपे
आंधी की भी मार सहे
जब आये बौराया बादल
उसकी भी बौछार गहे
तिलक लगाते वंदन करते
हर रोज परिक्रमा भी भरते
लेकिन फिर रह जाती अकेली
चौरा चौखट से दूर ही रखते
साक्षी है सुख दुःख की
पर उसके कुछ हाथ नहीं
बस आँगन दुनिया उसकी
और कोई उसके पास नहीं
निर्मल गोधूली जब होती
बाती - दीया करें बातें
तब भी वह बाट जोहती
कैसे कटे लम्बी रातें
घनघोर निशा की वीरानी
इन्तजार में ही कट जाती
आती जब प्रथम किरण
सारा विषाद हर ले जाती .
प्रकृति की निर्मल छटा है इस रचना में
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteतुलसी कृष्ण प्रेयसी, नमो नमः
ReplyDeletebhtrin rchna ..akhtar khan akela kota rajasthan
ReplyDeleteबहुत खूब्।
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteनिर्मल गोधूली जब होती
ReplyDeleteबाती - दीया करें बातें
तब भी वह बाट जोहती
कैसे कटे लम्बी रातें
Aah! Kitni sundar panktiya hain!
अच्छी कविता बधाई |ब्लॉग पर आने हेतु आभार
ReplyDeleteकैसा भी अंधेरा हो कटता ज़रूर है। बस धैर्य धरना चाहिए।
ReplyDeleteतुलसी के माध्यम से गूढ़ अर्थ समझाया आपने!! बहुत अच्छे!!
ReplyDeletebahut acchhi rachna. aaj tulsi ji par bhi vichar karna padega....lekin ghar ke ander bhi to unka falna foolna nahi ho sakta na.
ReplyDeleteसाक्षी है सुख दुःख की
ReplyDeleteपर उसके कुछ हाथ नहीं
बस आँगन दुनिया उसकी
और कोई उसके पास नहीं
मनमोहक रचना ...पावन भावों को लिए रचना
आँगन की तुलसी का साक्षात दर्शन हो गया!
ReplyDeleteसुंदर रचना!
तुलसी महिमा पढने से दिल गदगद हो गया
ReplyDeleteनीरज
बहुत सुन्दर संवेदनशील अभिव्यक्ति...
ReplyDeletesundar prastuti....
ReplyDeleteवाह सुन्दर रचना!
ReplyDeleteसादर बधाईयां....
सच है भोर की किरण विषाद हर लेती है ... सुन्दर दोहे हैं सभी ...
ReplyDelete