Sunday, November 13, 2011

तुलसी


चित्र साभार गूगल 


तुलसी सूरज की आग तपे 
आंधी की भी  मार सहे  
जब आये बौराया बादल 
उसकी भी बौछार गहे

तिलक लगाते वंदन करते 
हर रोज परिक्रमा भी भरते 
लेकिन फिर रह जाती अकेली 
चौरा चौखट से दूर ही रखते 

साक्षी है सुख दुःख की 
पर उसके कुछ हाथ नहीं 
बस आँगन दुनिया उसकी
और कोई उसके पास नहीं 

निर्मल गोधूली जब होती
बाती - दीया करें बातें 
तब भी वह बाट जोहती 
कैसे कटे लम्बी रातें 

घनघोर निशा की वीरानी
इन्तजार में ही कट जाती
आती जब प्रथम किरण  
सारा विषाद हर ले जाती .

18 comments:

  1. प्रकृति की निर्मल छटा है इस रचना में

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  2. तुलसी कृष्ण प्रेयसी, नमो नमः

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  3. निर्मल गोधूली जब होती
    बाती - दीया करें बातें
    तब भी वह बाट जोहती
    कैसे कटे लम्बी रातें
    Aah! Kitni sundar panktiya hain!

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  4. अच्छी कविता बधाई |ब्लॉग पर आने हेतु आभार

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  5. कैसा भी अंधेरा हो कटता ज़रूर है। बस धैर्य धरना चाहिए।

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  6. तुलसी के माध्यम से गूढ़ अर्थ समझाया आपने!! बहुत अच्छे!!

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  7. bahut acchhi rachna. aaj tulsi ji par bhi vichar karna padega....lekin ghar ke ander bhi to unka falna foolna nahi ho sakta na.

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  8. साक्षी है सुख दुःख की
    पर उसके कुछ हाथ नहीं
    बस आँगन दुनिया उसकी
    और कोई उसके पास नहीं

    मनमोहक रचना ...पावन भावों को लिए रचना

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  9. आँगन की तुलसी का साक्षात दर्शन हो गया!
    सुंदर रचना!

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  10. तुलसी महिमा पढने से दिल गदगद हो गया

    नीरज

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  11. बहुत सुन्दर संवेदनशील अभिव्यक्ति...

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  12. वाह सुन्दर रचना!
    सादर बधाईयां....

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  13. सच है भोर की किरण विषाद हर लेती है ... सुन्दर दोहे हैं सभी ...

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