सोने सा पराग बिखराती
चंचल सी पीत रश्मियाँ
गहन कालिमा भी हर लेतीं
लगती नन्ही तरुणियाँ
उज्जवल चादर का सिरा पकड़
यह आगे बढती जाती हैं
फैला दे धवल चांदनी
जग हर्षित करती जाती हैं
एक झरोखे से आती
छन कर छोटी प्यारी धूप
ओस की बूँदें चुन लाती
मुस्काती जाती छोटी दूब
गुनगुनी धूप का इक टुकड़ा
दादी को बहुत लुभाता है
प्रतीक्षा में रहता मुखड़ा
जब आती, खिल जाता है
माँ भी तनिक पास आ जाती
धूप से मिलने, अपनी कहने
बीती घड़ियाँ लौट कर आती
हर्षित करती, लगती बहनें
धूप की आंच हर रिश्ते को प्रिय
सुलझा देती हर उलझन
धागे में धागे हों चाहे
मन में चुभी कोई उलझन
काश कि मेरे वश में होता
धूप को मुट्ठी में भर लेती
जब दिखते मेरे प्रिय उदास
चेहरे पर उजास भर देती
अच्छी रचना
ReplyDeleteगुनगुनी धूप का इतना सुन्दर शब्द चित्र !
ReplyDeleteआभार !
काश कि मेरे वश में होता
ReplyDeleteधूप को मुट्ठी में भर लेती
जब दिखते मेरे प्रिय उदास
चेहरे पर उजास भर देती………वाह कितने खूबसूरत भाव हैं।
बहुत ही सुन्दर शब्दचित्र खींचा है आपने साथ ही जिस प्रकार आपने प्राकृतिक बिम्बों को व्यक्तिगत भावों से जोड़ा है वह अद्भुत है!!
ReplyDeleteकाश कि मेरे वश में होता
ReplyDeleteधूप को मुट्ठी में भर लेती
जब दिखते मेरे प्रिय उदास
चेहरे पर उजास भर देती
Kitne sundar bhaav hain!
जब दिखते मेरे प्रिय उदास
ReplyDeleteचेहरे पर उजास भर देती
बहुत ही खास एहसासों को समेटे हैं यह पंक्तियाँ।
संजय भास्कर
नई पोस्ट
ये लो हम भी हुए दस हजारी
पर आपका स्वागत है
http://sanjaybhaskar.blogspot.com
apki muskaan me aur apke pyar me aapki dhoop chhupi hai jara use bikhero fir dekho.....
ReplyDeletesunder kriti.
प्रकृति का अद्भुत चित्रण..
ReplyDeleteसुंदर।
ReplyDeleteइस मौसम में धूप का मजा ही अलग है।
Hi...
ReplyDeleteMuthi main gar dhoop jo aati...
Kuchh anjuli main bhi bhar leta...
Gahan andhere jo pal aate...
Unhen prakashit main kar deta..
Alunkrut hindi se suvasit bhavpurn kruti...
Shubhkamnayen..
Deepak Shukla..
Mere blog par bhi aapka swagat hai.....
ReplyDeletewww.deepakjyoti.blogspot.com
Deepak Shukla..
काश कि मेरे वश में होता
ReplyDeleteधूप को मुट्ठी में भर लेती
जब दिखते मेरे प्रिय उदास
चेहरे पर उजास भर देती
....बहुत सुंदर प्रस्तुति...