पतंग
की तरह
लगता है
अपना भी जीवन .
पतंग
तय नहीं करती
अपनी दिशा
हवा का रुख
ही करता है विवश
निश्चित दिशा
की ओर उसकी उड़ान
और उड़ान की गति
होती है
किन्हीं हाथों में .
समय के थपेड़े
और
परिस्थितियां
ही तय करते हैं
हमारे जीवन की दिशा
और नियंत्रित होती है
गति
किन्हीं हाथों से .
खास अवसरों पर
लड़ाए जाते हैं
पेंच
मनोरंजन के लिए
जो पतंग से ज्यादा
उनके मालिकों के बीच
होते हैं
शीतयुद्ध जैसे .
पतंग से
नहीं पूछता कोई
कि कैसा लगता है उसे
जब लड़ाया जाता है
मन बहलाव के लिए
अपना वर्चस्व दिखाने के लिए .
डोर चाहे
कितनी भी मजबूत
क्यों न हो
कटना ही उसकी
नियति है
रंग बिरंगी
पतंगों के
भाग्य की
विडंबना ही है कि
उन्हें खुद नहीं पता
कि कटने के बाद
गिरेंगी किसके आँगन
या फिर किसी
तरू शाख पर
झूलती रहेंगी
चिंदी चिंदी होने तक .
जब भविष्य नहीं ज्ञात है तो जीवन पतंग जैसा ही हुआ।
ReplyDeleteगहन चिंतन!
ReplyDeleteबेहद गहन और संवेदनशील अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteYATHARTH KA SAHI LEKHA JOKHA KIYA.
ReplyDeleteसमय के थपेड़े
ReplyDeleteऔर
परिस्थितियां
ही तय करते हैं
हमारे जीवन की दिशा
सही कहा है ..सटीक लेखन
गहन सन्देश देती रचना |
ReplyDeleteआपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
ReplyDeleteकृपया पधारें
चर्चा मंच-708:चर्चाकार-दिलबाग विर्क
भावमयी संवेदनशील रचना...
ReplyDeleteसादर बधाई...
sach hai kabhi kabhi jeewan bhi patang jesa lagne lagta hai
ReplyDeleteपतंग सा ही होता है जीवन जिसकी डोर पता नहीं किस अज्ञात के हाथों में होती है.. हम सब सोचते हैं कि हमने आकाश छू लिया लेकिन सब उसकी मर्जी से होता है!!
ReplyDeleteजीवन का चित्रण कर दिया आपने कविता के माध्यम से
ReplyDeleteमित्रों चर्चा मंच के, देखो पन्ने खोल |
ReplyDeleteआओ धक्का मार के, महंगा है पेट्रोल ||
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बुधवारीय चर्चा मंच ।