Tuesday, November 22, 2011

कटी पतंग
















पतंग
की तरह
लगता है 
अपना भी जीवन .
 
पतंग
तय नहीं करती
अपनी दिशा
हवा का रुख
ही करता है विवश
निश्चित दिशा
की ओर उसकी उड़ान
और उड़ान की गति
होती है
किन्हीं हाथों में .
 
समय के थपेड़े  
और
परिस्थितियां
ही तय करते हैं
हमारे जीवन की दिशा
और नियंत्रित होती है
गति
किन्हीं हाथों से .
 
खास अवसरों पर
लड़ाए जाते हैं
पेंच
मनोरंजन के लिए
जो पतंग से ज्यादा
उनके मालिकों के बीच
होते हैं
शीतयुद्ध जैसे . 
 
पतंग से
नहीं पूछता कोई
कि  कैसा लगता है उसे
जब लड़ाया जाता है
मन बहलाव के लिए
अपना वर्चस्व दिखाने के लिए .
 
डोर चाहे
कितनी भी मजबूत
क्यों न हो
कटना ही उसकी
नियति है 
 
रंग बिरंगी
पतंगों के
भाग्य की
विडंबना ही है कि
उन्हें  खुद नहीं पता 
कि कटने के बाद 
गिरेंगी किसके आँगन 
या फिर किसी 
तरू शाख पर 
झूलती रहेंगी 
चिंदी चिंदी होने तक .  

12 comments:

  1. जब भविष्य नहीं ज्ञात है तो जीवन पतंग जैसा ही हुआ।

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  2. बेहद गहन और संवेदनशील अभिव्यक्ति।

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  3. समय के थपेड़े
    और
    परिस्थितियां
    ही तय करते हैं
    हमारे जीवन की दिशा

    सही कहा है ..सटीक लेखन

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  4. गहन सन्देश देती रचना |

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  5. आपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
    कृपया पधारें
    चर्चा मंच-708:चर्चाकार-दिलबाग विर्क

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  6. भावमयी संवेदनशील रचना...
    सादर बधाई...

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  7. sach hai kabhi kabhi jeewan bhi patang jesa lagne lagta hai

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  8. पतंग सा ही होता है जीवन जिसकी डोर पता नहीं किस अज्ञात के हाथों में होती है.. हम सब सोचते हैं कि हमने आकाश छू लिया लेकिन सब उसकी मर्जी से होता है!!

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  9. जीवन का चित्रण कर दिया आपने कविता के माध्यम से

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  10. मित्रों चर्चा मंच के, देखो पन्ने खोल |
    आओ धक्का मार के, महंगा है पेट्रोल ||
    --
    बुधवारीय चर्चा मंच

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