चहुँ ओर तिमिर का घन
कैसे दीप जलाऊं मैं
कुछ छंट जाये होवें कम
थोड़े जुगनू ले आऊं मैं
ममता की आँखें पथराई
कैसे दीप जलाऊं मैं
बेटा दंगों की भेंट चढ़ा
सद्भाव कहाँ से लाऊं मैं
निरक्षरता है पाँव पसारे
कैसे दीप जलाऊं मैं
भुखमरी गरीबी करती बातें
रोटी, कपड़ा दे पाऊं मैं
बिन ब्याही बेटी के सपने
कैसे दीप जलाऊं मैं
लाल जोड़े की आस जगाये
दहेज़ कहाँ से लाऊं मैं
जीवन की साँझ में पलते
कैसे दीप जलाऊं मैं
उनकी जो उठा ले कांवर
श्रवण ढूंढ न पाऊं मैं
बिरहन के सूने नैना
कैसे दीप जलाऊं मैं
भर दे जो सतरंग उजास
प्रिय को उसके ला पाऊं मैं
फिर तो दीप जलाऊं मैं कैसे दीप जलाऊं मैं
कुछ छंट जाये होवें कम
थोड़े जुगनू ले आऊं मैं
ममता की आँखें पथराई
कैसे दीप जलाऊं मैं
बेटा दंगों की भेंट चढ़ा
सद्भाव कहाँ से लाऊं मैं
निरक्षरता है पाँव पसारे
कैसे दीप जलाऊं मैं
भुखमरी गरीबी करती बातें
रोटी, कपड़ा दे पाऊं मैं
बिन ब्याही बेटी के सपने
कैसे दीप जलाऊं मैं
लाल जोड़े की आस जगाये
दहेज़ कहाँ से लाऊं मैं
जीवन की साँझ में पलते
कैसे दीप जलाऊं मैं
उनकी जो उठा ले कांवर
श्रवण ढूंढ न पाऊं मैं
बिरहन के सूने नैना
कैसे दीप जलाऊं मैं
भर दे जो सतरंग उजास
प्रिय को उसके ला पाऊं मैं
चहुँ ओर तिमिर का घन
ReplyDeleteकैसे दीप जलाऊं मैं
अंतर्द्वन्द की सुन्दर रचना
दीप जले शंख बजे
ReplyDeleteजीवन में सुर सजे
बहुत सुंदर कविता....दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें... हैप्पी दीपावली..
ReplyDeleteचर्चा मंच परिवार की ओर से दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ!
ReplyDeleteआइए आप भी हमारे साथ आज के चर्चा मंच पर दीपावली मनाइए!
दीपावली की ढेर सारी शुभकामनाएं
ReplyDeleteमन के दीप जलाती रचना, सबके मन का अन्धतम मिटे, सबका जीवन सफल हो।
ReplyDeletesunder prastuti...deepawali ki hardik shubhkamnayen...
ReplyDeleteउजास और तम का अद्भुत विरोधाभास प्रस्तुत किया है आपने और संवेदना को एक नया आयाम...
ReplyDeleteफिर भी दीप-पर्व की शुभकामनाएं, ताकि वो सारा तम समाप्त हो!!
दीपावली की ढेर सारी शुभकामनाएं
ReplyDeleteभावपूर्ण!
ReplyDeleteशुभ दीपावली!
दीपोत्सव को सार्थक करती अभिव्यक्ति.बहुत भावपूर्ण लिखा है आपने.
ReplyDeleteवाह ...बहुत बढि़या ...बहुत-बहुत शुभकामनाएं ।
ReplyDeleteचहुँ ओर तिमिर का घन
ReplyDeleteकैसे दीप जलाऊं मैं
कुछ छंट जाये होवें कम
थोड़े जुगनू ले आऊं मैं
.....लोक में व्याप्त तम को मिटाने के संकल्प को साकार करती सुन्दर रचना..
bahut sunder likha hai.....
ReplyDeleteबिन ब्याही बेटी के सपने
ReplyDeleteकैसे दीप जलाऊं मैं
लाल जोड़े की आस जगाये
दहेज़ कहाँ से लाऊं मैं
शुभकामनाएं..... ।
निरक्षरता है पाँव पसारे
ReplyDeleteकैसे दीप जलाऊं मैं
भुखमरी गरीबी करती बातें
रोटी, कपड़ा दे पाऊं मैं
Gahari Baat liye panktiyan...Shuhkamnayen...
दीप जलेंगे तो निराशा भी दूर होगी ...
ReplyDeleteबहुत शुभकामनायें !
बहुत सटीक और भावपूर्ण अभिव्यक्ति ...बहुत सुन्दर
ReplyDeleteमार्मिक ... इंसानी विवशताओं का सटीक चित्रण ...
ReplyDeleteअच्छी रचना
ReplyDeleteबहुत सुंदर