Wednesday, March 31, 2010

गिलहरी

युद्ध बिगुल बज उठा
वानर सेना ने कसम उठाई
लंका को जीत हम लेंगे
सागर के उर पर करें चढाई ।


महासागर पर सेतु बाँधा
नल और नील कुशल निर्माता
पत्थर तैरेंगे जल पर
आयेंगे लखन और भ्राता ।


दिल में कुछ अनुराग लिए
थी एक गिलहरी देख रही
श्रीराम पधारेंगें इस पर
मन ही मन कुछ सोच रही ।


भाग्यशाली है पुल कितना
पदार्पण इस पर प्रभु का होगा
ऊबड़ खाबड़ से सेतु पर
कैसे उनका चलना होगा ।


शूल चुभेंगे उन पैरों में
जिनको हम शीश नवाते हैं
चरण रज मस्तक पर सजा
फूलों का अर्पण करते हैं ।


कैसे इस राह को
करूँ सुवासित , महका दूं
कंकड़ चुन लूं, पुष्प बिछा
रेशम सा मखमल कर दूं ।


आनन फानन में कूद पड़ी
वह सागर के भीतर
खुद को सारा भिगो लिया
कुछ पानी मुंह के भीतर ।


एक लोट लगाईं धूल धूसरित
झाडा खुद को पुल पर जाके
सेतु को समतल कर दूंगी
हुई प्रफुल्लित मन की करके ।


विस्मित से राम यह देख रहे
इस जीव की करुणा भक्ति को
ये देना चाहे योगदान
प्रणाम है इसकी शक्ति को ।


प्रभु निकट गिलहरी के पहुंचे
करकमलों में दी प्रेम से थाप
हाथ फिराया स्नेह से उस पर
अमिट हो गई उँगलियों की छाप ।

3 comments:

  1. आहा,पढकर यूँ लगा जैसे सच में मै वो महान दृश्य देख रहा हूँ ,गिलहरी के सिर पर प्रभु श्रीराम का हाँथ है ,इतने अद्भुत भाव ,क्या कहने

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  2. कैसे इस राह को
    करूँ सुवासित , महका दूं
    कंकड़ चुन लूं, पुष्प बिछा
    रेशम सा मखमल कर दूं ।

    इश्वर भागती और प्रेम की एक अध्भूद छवि उभर कर ई है,,, आपकी रचनात्मकता को प्रणाम जो शब्दों के ज़रिये एक भावपूर्ण द्रश्य उभर दिया जो यथार्थ सजीव प्रतीत होता है...

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  3. prem ka adbhut drishya ......
    mere sanchayan sangrah mein apni rachnaon ke saath shareek hon to khushi hogi......

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