Thursday, October 27, 2016



Image result for burning diya in dark night

अँधेरा 


अमावस की वो 
काली रात थी 
पर किस्मत जो 
मेरे साथ थी 

घेरे था मुझे 
घुप्प  अँधेरा 
जैसे न होगा 
कभी सवेरा 

गहन तिमिर था 
दोनों बाँहे पसारे 
अनजान बहुत था 
होगा सूरज ओसारे

कोठरी काजल की 
ढेर सी स्याही 
सजे जिन नैनों में 
लगती कितनी प्यारी 

रात थी अँधेरी 
थोड़ी सी लम्बी 
क्या न कटेगी 
लगती थी  दम्भी 

इतने में आई 
बाती  की एक किरन 
सिमटा था तिमिर 
माथे पर न शिकन 

अँधेरा जीता नहीं
पर दे गया बहुत
शाम बीती नहीं 
आऊंगा लौट खुद 

घबराना नहीं तुम 
जाता हूँ दे हौसला 
उजियारा हैं तुम्हीं में 
भरना इसी से घोंसला .

4 comments:

  1. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि- आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल शनिवार (29-10-2016) के चर्चा मंच "हर्ष का त्यौहार है दीपावली" {चर्चा अंक- 2510} पर भी होगी!
    दीपावली से जुड़े पंच पर्वों की
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    ReplyDelete
  2. बहुत सुन्दर

    ReplyDelete
  3. beautiful poem. aisa laga jaise mujhe bhi andhakaar mein aasha ki kiran dikhai di.

    ReplyDelete
  4. अँधेरा को दूर करने के लिए आशाओ का छोटा सा दीप काफी होता है। अच्छी कविता।

    ReplyDelete