राजपथ से. . . . . . .
रंग बिरंगे सब फूलों की
सुगंध एक बन जाऊं
तितलियाँ भ्रमर करें परिहास
मैं सारा उपवन महकाऊँ।
सतरंगी मेले में जाकर
रंग तीन चुन लाऊँ
उन रंगों का मेल जोल कर
बस एक तिरंगा लहराऊं।
दुनिया में है धर्म अनेक
कितने नाम गिनाऊँ
सबमें हूँ मैं सर्वश्रेष्ठ
तभी तो मानवता कहलाऊं।
भारतवर्ष प्रिय देश मेरा
बहु संस्कृति समाए
सबको अपने प्रेमपाश में
सम्मोहित करती जाए।
मत बांटो इस धरा को तुम
स्वयं भी तुम बंट जाओगे
जात - पात की लिए कटार
अकेले ही रह जाओगे।
है राष्ट्र बड़ा, सम्मान बड़ा
मानव तुम पूजे जाते हो
मिल जुल कर सब रहें यहाँ
तो देशभक्त कहलाते हो।
मिटा दो वह अदृश्य कलंक
भाई - भाई से क्रूर हुआ
तिलक करो अब चन्दन का
वैर, द्वेष सब दूर हुआ।
मिटटी से मिटटी का नाता
वह अपने पास बुलाती है
कुरीतियों का ताना बाना
मन की दूरियां बढाती है।
हे ईश्वर! मुझको वर देना
रहे अखंड देश मेरा
साथ मनाऊं ईद - दिवाली
सहस्त्रों बार आभार तेरा ।।
गणतंत्र दिवस को सार्थक करती रचना। बहुत बहुत शुभकामनाएं।
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