(पावस की प्रथम बूंदों की प्रतीक्षा में )
जेठ की तपती दुपहरी
धरा थी शुष्क दग्ध
मेघ आये ले सुनहरी
पावस की बूंदे लब्ध
संचार सा होने लगा
जी उठी जीवन मिला
सोया हुआ पंछी जगा
सुन पुकार कुमुद खिला
अंगार हो रही धरती
धैर्य थी धारण किए
दहकती ज्वाला गिरती
अडिगता का प्रण लिए
मुरझा गए पुष्प तरू
मोर मैना थे उदास
सोचती थी क्या करूँ
जाए बुझ इसकी प्यास
सूख गए नदी नार
ताल तलैया गए रीत
मछलियाँ पड़ी कगार
गाये कौन सरस गीत
टिमटिम उदासी का दीया
आई ये कैसी रवानी
हल ने मुख फेर लिया
पगडण्डी छाई वीरानी
घन छाये घनघोर बरस
तृप्ति का उपहार लिए
इन्द्रधनुष दे जाओ दरस
रंगों का मनुहार लिए
sundar prastuti
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना .... फुहार सी बरसाती हुई
ReplyDeleteउत्कृष्ट रचना ...अब तो बस बरस ही जाएँ मेघा ....
ReplyDelete......बरसाती फुहार जैसी रचना
ReplyDeleteजीवन भर लाओ, बरस जाओ।
ReplyDeleteBehad umang bharee rachana..
ReplyDeleteBAHUT ACHCHI RACHANA
ReplyDeletePYASI DHARATI KO TRIPTI MIL GAI
अब तो बरस भी जाओ ....बहुत सुन्दर प्रस्तुति..
ReplyDeleteवाह ... बेहतरीन प्रस्तुति।
ReplyDelete..अब तो बस बरस ही जाएँ मेघा ....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना...
बहुत सुन्दर .....
ReplyDeleteकिसको नहीं है इन्तेज़ार मेघों का....
अनु
वारिश की प्रतीक्षा में सभी लगे हुए हैं. सुंदर प्रस्तुति.
ReplyDeleteबहुत खुबसूरत.....
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