Monday, May 28, 2012

लगता है कुछ तुम सा


(चित्र गूगल से साभार )

 
स्मृति की सीप से 
एक मोती है उपजा 
स्निग्ध श्वेत धवल 
लगता है कुछ तुम सा


स्नेह का पल्लव 
लाने को है आतुर सा 
प्रीत का पुष्प 
लगता है कुछ तुम सा



बिछोह के घन 
भर देते हैं तम सा 
जरूर बरसेगा अनुराग
लगता है कुछ तुम सा


लिए कुटिल मुस्कान
निराशा की निशा 
होगा आशा का सवेरा 
लगता है कुछ तुम सा


सपनों का पुलिंदा 
प्रतीक्षा में  कसमसाता 
कभी तो होगा सच 
लगता है कुछ तुम सा



नभ में सरकता चंदा 
मेरे आँगन जो पहुंचा
करता है ताक-झांक 
लगता है कुछ तुम सा



गौरैया का भोर गान 
गुनगुन भ्रमर सा 
पिहू पिहू पपीहा 
लगता है कुछ तुम सा


मंदिर में मंत्रोच्चार 
ईश्वर उसमें बसा 
शंख का जय गान 
लगता है कुछ तुम सा .

9 comments:

  1. कुछ तुम सा, बहुत ही सुन्दर भाव..

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  2. लगता है कुछ तुम सा,,,,,,,

    सुंदर भावपूर्ण प्रस्तुति,,,,,

    RECENT POST ,,,,, काव्यान्जलि ,,,,, ऐ हवा महक ले आ,,,,,

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  3. स्मृति की सीप से
    एक मोती है उपजा
    स्निग्ध श्वेत धवल
    लगता है कुछ तुम सा....भावपूर्ण कविता के लिए आभार

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  4. स्मृति की सीप से
    एक मोती है उपजा
    स्निग्ध श्वेत धवल
    लगता है कुछ तुम सा
    Behtareen! Waise pooree rachana hee behad sundar hai!

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  5. मंदिर में मंत्रोच्चार
    ईश्वर उसमें बसा
    शंख का जय गान
    लगता है कुछ तुम सा .……………बहुत खूबसूरत भाव समन्वय

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  6. लिए कुटिल मुस्कान
    निराशा की निशा
    होगा आशा का सवेरा
    लगता है कुछ तुम सा

    सवेरा तो होना ही है ..
    बहुत सुन्दर रचना

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  7. खूबसूरत रचना.... वाह!
    सादर।

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  8. प्रशंसनीय रचना - बधाई
    नई पोस्ट ....कहीं ऐसा तो नही पर आपका स्वगत है

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  9. आज आपके ब्लॉग पर बहुत दिनों बाद आना हुआ अल्प कालीन व्यस्तता के चलते मैं चाह कर भी आपकी रचनाएँ नहीं पढ़ पाया. व्यस्तता अभी बनी हुई है लेकिन मात्रा कम हो गयी है...:-)

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