बीज समाया धरती में
अंकुर चाहे देखूं भोर
खींच ली निर्दयी ने
मेरे जीवन की डोर
सुगबुगाना भी न आया ।
सृष्टि के उपवन में
सुकोमल एक कली खिली
कोपल थी अपनी धुन में
किया विलग वो धूल मिली
कुनमुनाना भी न आया ।
कुछ और बरस बीते
उम्र थी देखू सपनों को
ऊँची उड़ान जगत जीते
निर्मोही क़तर गया पंखों को
पलक झपकाना भी न आया ।
मेरे हिस्से का आसमान
मेरी इच्छा बलवती पले
था किसी और का बागवान
सरका दी धरती पाँव तले
जरा डगमगाना भी न आया ।
आहट भेजी जब वसंत ने
फिर से मन बौराया
सपने बुने बावरे नैनों ने
उनका चटक रंग चुराया
फिर भी मुझे रोना न आया .
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एक बेहतरीन भावप्रवण दिल मे उतरने वाली प्रस्तुति।
ReplyDeleteबीज समाया धरती में
ReplyDeleteअंकुर चाहे देखूं भोर
खींच ली निर्दयी ने
मेरे जीवन की डोर
सुगबुगाना भी न आया ।
बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति ।
बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteबेहतरीन, बस हृदय छू कर निकल गयी।
ReplyDeletekuch sulagte ehsaason ko gahraati rachna
ReplyDeleteमेरे हिस्से का आसमान
ReplyDeleteमेरी इच्छा बलवती पले
था किसी और का बागवान
सरका दी धरती पाँव तले
जरा डगमगाना भी न आया ।
खूबसूरती से मन के एहसासों को लिखा है ...
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteआहट भेजी जब वसंत ने
ReplyDeleteफिर से मन बौराया
सपने बुने बावरे नैनों ने
उनका चटक रंग चुराया
रामपती जी बहुत सुन्दर रचना है बधाई।
बहुत है सशक्त और सुंदर अभिव्यक्ति है
ReplyDeleteहर पहरा बहुत अच्छा लगा.
करते रहा करतब कई ...
ReplyDeleteमुझे आंसुओं से नहलाने को ...
कितनी सख्त बंजर थी आँखे ...
फिर भी रोना ना आया ...
भरे ह्रदय की कविता ...!
अच्छा लिखा है
ReplyDeletebhut hi saral shbdo me shj bhav se anubhootiyo ko abhivykt krti shandar prstuti ke liye bdhaai our dhnywaad .
ReplyDeleteआहट भेजी जब वसंत ने
ReplyDeleteफिर से मन बौराया,,,,,,
सुंदर प्रस्तुति....
नवरात्रि की को बहुत बहुत शुभकामनाएँ
मैं तो सोच रहा था कि तुकान्त हिन्दी कविता लिखने वाले अब कम ही रह गये हैं! मगर आपके यहाँ आकर निराश नही होना पड़ा!
ReplyDelete--
आहट भेजी जब वसंत ने
फिर से मन बौराया
सपने बुने बावरे नैनों ने
उनका चटक रंग चुराया
फिर भी मुझे रोना न आया ....
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बहुत सुन्दर शब्द चयन!
बढ़िया कविता!
बहुत ही भावपूर्ण प्रस्तुति...बधाई...
ReplyDeleteDil ko chhooti hui, Bhavnaon ko sahlati... door tak kasak jagati Bhavbheeni prastuti par kotishah badhayee.
ReplyDelete-Rajan
Shavdon ka chayan aur prayog achha laga. Shavdon ko khubsurati se piroya gaya hai.Mere blog par bhi comment dekar mujhe prerit karein. Dhanyavad.
ReplyDeleteरामपति जी, बहुत सुंदर भाव हैं। बधाई स्वीकारें।
ReplyDelete---------
इंटेलीजेन्ट ब्लॉगिंग अपनाऍं, बिना वजह न चिढ़ाऍं।
मेरे हिस्से का आसमान
ReplyDeleteमेरी इच्छा बलवती पले
था किसी और का बागवान
सरका दी धरती पाँव तले
जरा डगमगाना भी न आया ।...
Beautiful presentation !
.
कविता के भाव मन को छूते हैं !
ReplyDeleteअच्छी पोस्ट के लिए धन्यवाद !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
आहट भेजी जब वसंत ने
ReplyDeleteफिर से मन बौराया
सपने बुने बावरे नैनों ने
उनका चटक रंग चुराया
फिर भी मुझे रोना न आया ...
सुंदर पंक्तियाँ है ... आचे भाव संजोय हैं ....
दिल की गहराईयो को छूने वाली, गहन संवेदनाओं की बेहद मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति. आभार.
ReplyDeleteसादर
डोरोथी.
सुन्दर भाव - भूमि पर कविता
ReplyDeleteHi..
ReplyDeleteMan ki antarvyatha kabhi bhi, samjhana hai na aaya..
Aas paas hi rahe blog ke..
Kuchh kah pana na aaya..
Kavita ke antarbhavon main, hain ahsaas sanjoye jo..
Padhkar hum khamosh ho gaye..
Muskana bhi na aaya..
Aaj pahli baar aapke blog par aaya hun.. Lagta hai aap bhi meri tarah masruf rahti hai aur lambe antral par nayi post likhti hain..
Aaj se main aapke blog ka anusarankarta hua..
Deepak..
एक बेहतरीन दिल मे उतरने वाली प्रस्तुति........
ReplyDeleteअच्छे शब्द
ReplyDeleteअच्छी तरतीब
अच्छी रचना . . .
सुख-दुख, हंसना-रोना, धूप-छांव ज़िन्दगी जीना सिखाते हैं ! सुन्दर रचना ! मेरे ब्लोग पर भी आएं !
ReplyDeleteसुन्दर रचना
ReplyDeleteऐसी सार्थक रचना के लिए बहुत - बहुत बधाई
आज आपकी कविता दुबारा पढी और कमेंट किये बिना न रह सका। सचमुच बहुत सुंदर हैं आपके भाव। जीवनी रस से सरोबार।
ReplyDelete---------
आपका सुनहरा भविष्यफल, सिर्फ आपके लिए।
खूबसूरत क्लियोपेट्रा के बारे में आप क्या जानते हैं?