Tuesday, April 6, 2010

दीप

गहन तिमिर में सेंध लगा
एक ज्योतिपुंज लहराया
घोर अँधेरा जितना भी हो
विजय दर्प फहराया ।

रात अमावस की हो चाहे
चन्द्र दूज बन आऊंगा
सघन निशा के जितने पहरे
शुभ प्रभात दिखलाऊंगा ।

मैं सारथी हूँ उजास का
तेरे जीवन में आऊंगा
उम्मीदों का बन प्रतीक
जगमग जगमग कर जाऊँगा ।

दीप, सिर्फ एक दीप नहीं मैं
साक्षी हूँ तेरे सपनों का
आशाओं का तेरे बसेरा
साथी हूँ तेरे अपनों का ।

हे मेरे झीने प्रकाश जा
उनके पथ को आलोकित कर
भटक न जाएँ मेरे प्रियवर
राह दिखा ध्रुव तारा बनकर ।

8 comments:

  1. बहुत सुन्दर और लयबद्ध कविता.........."

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  2. गहन तिमिर में सेंध लगा
    एक ज्योतिपुंज लहराया
    घोर अँधेरा जितना भी हो
    विजय दर्प फहराया । kavita ka wastvik swroop,
    prashansa ke liye jb koi shab nahi sujhta hai to kahna pada "sunder,ati suder...."

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  3. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति भाषा, लय, प्रवाह उन्माद,विरह औए मर्म सब कुछ एक साथ!!!!!!!!!!!!!! शब्द जीवंत हैं भाषा में लय और गति है जीवन की. सच बहुत कम शब्दों में बहुत लम्बी बातें,न कहते हुए भी बहुत कुछ कह गयीं

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  4. वर्ड वेरिफिकेशन हटा दें असुविधा होती है
    आभार

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  5. bahut bahut hi achhe bhawon ko jivant bana diya hai

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  6. " दीप, सिर्फ एक दीप नहीं मैं
    साक्षी हूँ तेरे सपनों का
    आशाओं का तेरे बसेरा
    साथी हूँ तेरे अपनों का ।"
    एक दीपक कितनी साम्भावनाये लेकर आ सकता है.. आपने व्यक्त कर दिया है... दीपक को प्रतीक बना प्रेम कि सुंदर अभिव्यक्ती भी है आपकी कविता में... कविता अपने लय में है और शब्दो का संयोजन अच्छ बना है... लिखति रहे...

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  7. "विजय दर्प फहराया" साक्षी हूं तेरे सपनों का" बहुत बढ़िया...भाव और प्रतीक तो नूतन है ही शब्दों के चुनाव तो कहना ही क्या.वाह...वाह...हां एक बात कहना चाहूंगा -आशाओं का तेरे बसेरा- की जगह -आशाओं का तेरा बसेरा- अधिक जंचता है.कृपया अन्यथा न लें.

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  8. मैं सारथी हूँ उजास का
    तेरे जीवन में आऊंगा
    उम्मीदों का बन प्रतीक
    जगमग जगमग कर जाऊँगा ।
    आशा जगाती सुन्दर रचना

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