Monday, April 19, 2010

मेरी परिधि

असंख्य वृत्त नित्य निर्मित
अनवरत है परिक्रमा मेरी
मध्य मेरे अपने मेरे सपने
यही तो है परिधि मेरी ।

संसार मेरा यह परिधि चक्र
खो गया जिसमे मेरा निजपन
मन है इससे बाहर लान्घू
डर है खो ना दूं संतुलन ।

ना जाने कौन राह से तुम
इस परिधि में चले आये हो
सीमाबंधन को तोड़ के तुम
मन का कोना हथियाए हो ।

परिधि में एक शून्य बना
कल लौट तुम जाओगे
भर जाएगा खामोश रीतापन
स्मृतियों में यूं बस जाओगे ।

इस परिधि के आसपास
तुम अपना नीड़ बना लेना
थक जाऊं जब घूम - घाम
उर में मेरे गति भर देना ।

5 comments:

  1. इस परिधि के आसपास
    तुम अपना नीड़ बना लेना
    थक जाऊं जब घूम - घाम
    उर में मेरे गति भर देना ।.... yahi khwaahish liye poori yatra chalti hai

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  2. परिधि में एक शून्य बना
    कल लौट तुम जाओगे
    भर जाएगा खामोश रीतापन
    स्मृतियों में यूं बस जाओगे ।

    किसी के मिलने की ख़ुशी और उसके इस दिल को कुछ पल का सुकून दे कर चले जाने के डर को बखूबी प्रस्तुत किया गया है... लाजवाब रचना है...

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  3. असंख्य वृत्त नित्य निर्मित
    अनवरत है परिक्रमा मेरी
    मध्य मेरे अपने मेरे सपने
    यही तो है परिधि मेरी ।
    har insan apani-apani paridhi bana kar parikrama rat hai,afsos to ye hai ki ye paridhi nitya chhoti hoti ja raji hai,jisame insan ka astitva aur sapane ghut rahe hai,lekin paridhi badi karne ke usake apane dar bhi hai,kisi ko apani paridhi me shamil karne se apani nijata ke khatm hone ka dar,apane sapane chura lene ka dat.sach kitana akela hai insan is paridhi me aur kitana asurakshit bhi.
    bahut bada yatharth hai is rachana me,aur "meaning between the lines"samajhane ki bat hai.

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  4. बहुत ही भावपूर्ण निशब्द कर देने वाली रचना . गहरे भाव.

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  5. इस परिधि के आसपास
    तुम अपना नीड़ बना लेना
    थक जाऊं जब घूम - घाम
    उर में मेरे गति भर देना

    apne anterman ki akant ki yatra ke shabdo se mulakaat ho gai.....

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