Tuesday, December 29, 2009

नए साल की लख लख वधाई

धवल दूध सा उज्जवल मुख
घुंघराली लट है खेल रही
नैनो में छाई है शोखी
मुस्कान अधर पर तैर रही ।
तुम हो प्रियतम मेरे
कहते आती है लाज मुझे
मैं बनूँ तुम्हारी प्रियतमा
सिहरन सी आती है मुझे ।
पंखुरियों का महा सैलाब
ले जाये बहा मझधार में
नए वर्ष की है आरजू
खुशबुओं का झंझावात
रच बस जाये तुम्हारे संसार में ।

1 comment:

  1. "मैं बनूँ तुम्हारी प्रियतमा
    सिहरन सी आती है मुझे ।"

    महादेवी वर्मा कि कविता से भाव आ रहे हैं... अपने प्रियतम का बहुत खूब वर्णन किया है आपने... आज कल की कविताओं में कहाँ दिख रहे हैं ऐसे भाव... ऐसी गीताक्त्मा... रोमांस भरे गीत को इक स्वर मिले... इक तस्वीर मिले... इक साथी मिले...

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