Monday, September 5, 2022

 

मेरे शिक्षक 


अध्यापक जी मुझे पढ़ाते 

जीवन का दर्शन समझाते  

जिसने रची है सृष्टि सारी 

उस विधना से हमें मिलाते !


प्रथम गुरु माँ जग में लाई 

कण कण में ऊर्जा भर आई 

लगती मुझको प्रिय सहेली 

पर है बिल्कुल अबूझ पहेली !


जीवन के आने से पहले 

और जीवन जाने के बाद 

कैसे उनको पता है सब 

 है सर्व ज्ञानी या कोई अपवाद  !


पग पग मुझको राह दिखाते 

ठहर जाऊं, उत्साह बढ़ाते 

गिर जाऊं तो मुझे उठाते

मेरे पथ प्रदर्शक बन जाते !


विद्यादान है महादान 

जग ने इनसे ही जाना 

स्वार्थ नहीं परमार्थ सबल है 

जन मानस ने भी माना !


ईश्वर से भी ऊँचे हो तुम 

खुद ईश्वर ने भी माना 

तुम बिन कौन खोज पाता 

जीवन चक्र का आना जाना !


कितने सरल , सह्रदय हो तुम 

मेरे शिक्षक, है तुम्हें  नमन 

महिमा तेरी कही न जाए 

चाहे कर दूँ खुद को अर्पण !

            *****


  

3 comments:

  1. ऐसा गुरु मिलना बड़ा दुर्लभ है फिर भी गुरुजन को नमन . अच्छी कविता

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  2. शिक्षक दिवस के अवसर पर सराहनीय हृदयस्पर्शी सृजन...गुरुजन को नमन

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  3. अच्छी जानकारी !! आपकी अगली पोस्ट का इंतजार नहीं कर सकता!
    greetings from malaysia

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