मेरे शिक्षक
अध्यापक जी मुझे पढ़ाते
जीवन का दर्शन समझाते
जिसने रची है सृष्टि सारी
उस विधना से हमें मिलाते !
प्रथम गुरु माँ जग में लाई
कण कण में ऊर्जा भर आई
लगती मुझको प्रिय सहेली
पर है बिल्कुल अबूझ पहेली !
जीवन के आने से पहले
और जीवन जाने के बाद
कैसे उनको पता है सब
है सर्व ज्ञानी या कोई अपवाद !
पग पग मुझको राह दिखाते
ठहर जाऊं, उत्साह बढ़ाते
गिर जाऊं तो मुझे उठाते
मेरे पथ प्रदर्शक बन जाते !
विद्यादान है महादान
जग ने इनसे ही जाना
स्वार्थ नहीं परमार्थ सबल है
जन मानस ने भी माना !
ईश्वर से भी ऊँचे हो तुम
खुद ईश्वर ने भी माना
तुम बिन कौन खोज पाता
जीवन चक्र का आना जाना !
कितने सरल , सह्रदय हो तुम
मेरे शिक्षक, है तुम्हें नमन
महिमा तेरी कही न जाए
चाहे कर दूँ खुद को अर्पण !
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ऐसा गुरु मिलना बड़ा दुर्लभ है फिर भी गुरुजन को नमन . अच्छी कविता
ReplyDeleteशिक्षक दिवस के अवसर पर सराहनीय हृदयस्पर्शी सृजन...गुरुजन को नमन
ReplyDeleteअच्छी जानकारी !! आपकी अगली पोस्ट का इंतजार नहीं कर सकता!
ReplyDeletegreetings from malaysia