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(चित्र गूगल से साभार ) |
स्मृति की सीप से
एक मोती है उपजा
स्निग्ध श्वेत धवल
लगता है कुछ तुम सा
स्नेह का पल्लव
लाने को है आतुर सा
प्रीत का पुष्प
लगता है कुछ तुम सा
बिछोह के घन
भर देते हैं तम सा
जरूर बरसेगा अनुराग
लगता है कुछ तुम सा
लिए कुटिल मुस्कान
निराशा की निशा
होगा आशा का सवेरा
लगता है कुछ तुम सा
सपनों का पुलिंदा
प्रतीक्षा में कसमसाता
कभी तो होगा सच
लगता है कुछ तुम सा
नभ में सरकता चंदा
मेरे आँगन जो पहुंचा
करता है ताक-झांक
लगता है कुछ तुम सा
गौरैया का भोर गान
गुनगुन भ्रमर सा
पिहू पिहू पपीहा
लगता है कुछ तुम सा
मंदिर में मंत्रोच्चार
ईश्वर उसमें बसा
शंख का जय गान
लगता है कुछ तुम सा .