Tuesday, December 20, 2022

 शब्द 


चाकू, छुरी, तीर और तलवार 

लड़ रहे थे कि 

सबसे गहरा घाव कौन देगा 

"शब्द" पीछे खड़ा मुस्कुरा रहा था  | 


हल्दी, नीम, तुलसी 

कर रहे थे सलाह कि 

कौन बनेगा इस घाव का मरहम 

 पीछे बैठ मंद - मंद 

मुस्कुरा रहे थे  "मीठे बोल" | 


शब्दों की महिमा से 

परिचित हैं हम सभी 

विरोधियों की फ़ौज खड़ी कर लेते हैं 

"कड़वे से बोल" और 

दुश्मन को भी गले लगा लेते हैं 

स्नेह में भीगे "विनम्र शब्द" | 


हर लेते हैं 

मन का सारा विषाद 

"सांत्वना के दो शब्द"

ह्रदय छलनी कर देते हैं 

उलाहना भरे "तीखे वचन" | 


बिना पंखों के ही 

नाप आते हैं आकाश 

और खींच आते हैं 

सतरंगी इंद्रधनुष, सुनकर 

"उत्साह से भरे शब्द" | 


निराश जीवन में भी 

नई स्फूर्ति और ऊर्जा 

भर नव जीवन का 

संचार कर देते हैं 

"प्रेम से भरे दो शब्द" | 

           ****



Monday, December 12, 2022

 मंजिल 


भीड़ से हटकर कुछ 

इस तरह बढ़ना है

आसमां को छूकर भी 

जमीं पर रहना है |


जमीं ने दिया है हौसला 

छूने को नीला आकाश 

जाकर मैं उस पर रख दूँ 

सुन्दर सा एक सुर्ख पलाश | 


भूमि ने है दिया भरोसा 

खूब उड़ो तुम नील गगन में 

यदि कभी कमजोर पड़े तो 

साहस लेना तुम मुझसे | 


उत्तम से भी हो अदभुत 

पहचान बनाओ एक नई 

भीड़ में भी जाओ पहचाने 

पीछे हो अनुयायी कई | 


कितना भी ऊँचा उड़ जाओ 

सांझ ढले तुम आ जाना 

धरती भी तो राह निहारे 

अपनी मंजिल पा जाना | 

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Tuesday, December 6, 2022

 कच्ची मिटटी 


तराशिये खुद को इस तरह 

कि स्वयं पर नाज़ हो जाए 

कोई और करे न करे 

खुद ही से प्यार हो जाए  | 


खुदा भी हमसे जब पूछे 

कि कौन है मुझसे रूबरू 

भेजी थी कच्ची मिटटी मैंने 

तराश कर किसने कलश बना दिया ?


इसमें भरा  है पवित्र गंगाजल

करने को पावन, बुझाने को प्यास 

मिटटी न मालूम क्या रूप लेगी 

ये तय नहीं करती मिटटी | 


ये तो कमाल है तराशने वाले 

हाथ और स्थितिरूपी चाक का 

थपकी प्यार की जिस दिशा में 

वही आकार पा जाती है मिटटी  | 


कुछ पा जाना और कुछ खोना 

सब हैं बहुत बाद की बातें

गढ़ना, बढ़ना, तराशना, संवारना 

खुद पर अभिमान की हैं बातें | 

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Sunday, December 4, 2022

 दुआ 


दुआ सदा संग रहती है 

बददुआ कभी पीछा नहीं छोड़ती | 


मतलब तो एक ही है 

दोनों को रहना है संग ताउम्र  | 


कहाँ कोई फर्क है इनमें 

महीन सी रेखा है बीच में  | 


बदल सकते हैं दुआ में 

किसी भी बददुआ को  | 


बस पढ़ना होगा वो मन 

जिसने दी है कोई बददुआ | 


मन के पन्ने पर लिखना होगा 

थोड़ा सम्मान , सदभावना जरा सी  | 


हौले से चस्पां करनी होगी 

एक इमोजी स्माइल वाली  | 


दुआ और बददुआ दोनों ही 

एक ही सिक्के के दो पहलू  हैं | 


मन यदि खुश तो दुआ 

गर हो जाए आहत तो बददुआ  | 


उठे जो हाथ दुआ के लिए 

सलामती सबकी हो शामिल | 


ईश्वर से सिर्फ यह विनती 

न फले कभी कोई बददुआ  | 

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Monday, November 28, 2022

 संवाद 


संवाद संबंधों को 

बनाने का औजार होते हैं 

जीवन को सुखमय 

बनाने का आधार होते हैं  | 


सुखद संवाद ऊर्जा और

रस से भरपूर होते हैं 

संवादहीन सम्बन्ध जैसे 

मृत, निष्क्रिय से रहते हैं  | 


जब आप संवाद 

बंद कर देते हैं 

तो अपने बहुमूल्य 

संबंधों को खो देते हैं  | 


संवादहीन जीवन 

भी क्या जीवन है 

अंतहीन सन्नाटे में 

लम्बी अँधेरी रात है  | 


संवाद ही है एक सेतु 

संबंधों को बनाने, बढ़ाने

और उसे गहराने का 

मधुर से मधुतर बनाने का  | 


संवादहीनता एक शून्य 

बड़ा नहीं होने देंगे 

भर देंगे अपनी बातों से 

उदास नहीं होने देंगे  | 


संकल्प आज हम लेते हैं 

निकलेगी बातों से बात 

तुम जो कुछ भी बोलोगे 

हम भी बोलेंगे साथ - साथ  | 

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Tuesday, November 22, 2022

 

ख्वाहिशें 


ख्वाहिशों का मोहल्ला

बहुत बड़ा होता है 

बेहतर है, मुड़ जाएँ  हम 

जरूरतों की गली में  | 


जरूरतों की गली  

के उस छोर पर 

कहीं मिल न जाए 

कोई खोई सी ख्वाहिश 

इन्तजार में  | 


जरूरतों की डोर 

तो है अपने हाथ 

कभी थोड़ी सी ढील 

कभी कसाव जरा सा  | 


ख्वाहिशें हैं इक 

ख्वाब खूबसूरत सा 

गर हो जाए मुकम्मल 

लगे सारा जहाँ अपना सा  | 


ख्वाहिशों को भी 

है हक़ कि नजरों में आए 

ना कि दफ़न हो जाए 

किसी के दरिया ए दिल में  |


ख्वाहिशें भी 

बेहद जरुरी हैं

गर ये न हो हमसफ़र 

तो जिंदगी अधूरी है  |  


ए हुजूर,

यूं मुँह न मोड़िए 

इन ख्वाहिशों से 

ये तो अपना ही साया है 

इनसे नाता तो जोड़िए  | 

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Saturday, October 8, 2022

 मन की उड़ान 


बादलों के रथ पर सवार 

छूने निकले हम आसमान 

रुई के गोले फिरते आवारा 

मैं भी पीछे फिरूं बेचारा | 


छोड़ कर असीम धरती 

अम्बर में मैं घूम रहा 

मन तो उससे भी ऊँचा 

जाने किस लोक को ढूंढ रहा | 


एरोप्लेन और मन में 

है ठन गई अब तगड़ी 

कौन ऊँचा उड़ सकेगा 

किसकी बचेगी पगड़ी | 


मन के हैं पंख बहुतेरे 

कौन रोके उसकी पतवार 

तोड़कर सारे तट बंधों को 

ले उड़ा मुझे क्षितिज के पार | 


अकेले हम मन भी अकेला 

पीछे छूटा सारा मेला 

फुर्सत के लम्हों को सी लें

आओ खुद में, खुद को जी लें | 


मुझसे मिलने आना तुम 

मिल बैठेंगे पल दो चार 

सपनों में खो जाना तुम 

जब धरा मिले नभ बारम्बार  | 

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Monday, September 5, 2022

 

मेरे शिक्षक 


अध्यापक जी मुझे पढ़ाते 

जीवन का दर्शन समझाते  

जिसने रची है सृष्टि सारी 

उस विधना से हमें मिलाते !


प्रथम गुरु माँ जग में लाई 

कण कण में ऊर्जा भर आई 

लगती मुझको प्रिय सहेली 

पर है बिल्कुल अबूझ पहेली !


जीवन के आने से पहले 

और जीवन जाने के बाद 

कैसे उनको पता है सब 

 है सर्व ज्ञानी या कोई अपवाद  !


पग पग मुझको राह दिखाते 

ठहर जाऊं, उत्साह बढ़ाते 

गिर जाऊं तो मुझे उठाते

मेरे पथ प्रदर्शक बन जाते !


विद्यादान है महादान 

जग ने इनसे ही जाना 

स्वार्थ नहीं परमार्थ सबल है 

जन मानस ने भी माना !


ईश्वर से भी ऊँचे हो तुम 

खुद ईश्वर ने भी माना 

तुम बिन कौन खोज पाता 

जीवन चक्र का आना जाना !


कितने सरल , सह्रदय हो तुम 

मेरे शिक्षक, है तुम्हें  नमन 

महिमा तेरी कही न जाए 

चाहे कर दूँ खुद को अर्पण !

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