Monday, December 12, 2022

 मंजिल 


भीड़ से हटकर कुछ 

इस तरह बढ़ना है

आसमां को छूकर भी 

जमीं पर रहना है |


जमीं ने दिया है हौसला 

छूने को नीला आकाश 

जाकर मैं उस पर रख दूँ 

सुन्दर सा एक सुर्ख पलाश | 


भूमि ने है दिया भरोसा 

खूब उड़ो तुम नील गगन में 

यदि कभी कमजोर पड़े तो 

साहस लेना तुम मुझसे | 


उत्तम से भी हो अदभुत 

पहचान बनाओ एक नई 

भीड़ में भी जाओ पहचाने 

पीछे हो अनुयायी कई | 


कितना भी ऊँचा उड़ जाओ 

सांझ ढले तुम आ जाना 

धरती भी तो राह निहारे 

अपनी मंजिल पा जाना | 

           ***** 

 

7 comments:

  1. भूमि ने है दिया भरोसा

    खूब उड़ो तुम नील गगन में

    यदि कभी कमजोर पड़े तो

    साहस लेना तुम मुझसे |
    जड़ से जुड़े रहना...
    बहुत ही सुन्दर सार्थक अप्रतिम सृजन ।

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  2. कितना भी आसमान छू लो लेकिन पैर धरती पर जमाये रखना ।।सुंदर रचना ।

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  3. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा गुरुवार 18 दिसंबर 2022 को 'देते हैं आनन्द अनोखा, रिश्ते-नाते प्यार के' (चर्चा अंक 4626) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:01 AM के बाद आपकी प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।

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  4. कितना भी ऊँचा उड़ जाओ

    सांझ ढले तुम आ जाना

    लौटकर तो धरती पर ही आना है
    बहुत ही सुन्दर सृजन 🙏

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  5. वाह वाह! अच्छी अभिव्यक्ति।

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  6. बहुत अच्छी प्रस्तुति

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