Tuesday, December 6, 2022

 कच्ची मिटटी 


तराशिये खुद को इस तरह 

कि स्वयं पर नाज़ हो जाए 

कोई और करे न करे 

खुद ही से प्यार हो जाए  | 


खुदा भी हमसे जब पूछे 

कि कौन है मुझसे रूबरू 

भेजी थी कच्ची मिटटी मैंने 

तराश कर किसने कलश बना दिया ?


इसमें भरा  है पवित्र गंगाजल

करने को पावन, बुझाने को प्यास 

मिटटी न मालूम क्या रूप लेगी 

ये तय नहीं करती मिटटी | 


ये तो कमाल है तराशने वाले 

हाथ और स्थितिरूपी चाक का 

थपकी प्यार की जिस दिशा में 

वही आकार पा जाती है मिटटी  | 


कुछ पा जाना और कुछ खोना 

सब हैं बहुत बाद की बातें

गढ़ना, बढ़ना, तराशना, संवारना 

खुद पर अभिमान की हैं बातें | 

           *****    

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