Monday, November 28, 2011

किताब


















किताब के पन्नों को
पलटते हुए ये ख्याल आया
यूं पलट जाए जिन्दगी
सोचकर रोमांच हो आया ।

ख्वाबों में जो बसते हैं
सम्मुख आ जाएँ तो क्या हो
किताबें सपने बेच रहीं हैं
हकीकत हो जाए तो क्या हो ।

उनका अक्स साथ लेकर
आँख है खुलती दिन ढलता
पलकें भारी होने से लेकर
रात ढले फिर दिन खुलता ।

हर पन्ने से प्यार मुझे
हर हरफ लगे उपहार मुझे
जो रहते हैं संग संग
चाहूं देना सब राग रंग ।

पढ़ना चाहूं मैं ऐसे
साँस समाई हो जैसे
हर पन्ना बने प्रेम अनुबंध
फूल और खुश्बू का सम्बन्ध ।

Tuesday, November 22, 2011

कटी पतंग
















पतंग
की तरह
लगता है 
अपना भी जीवन .
 
पतंग
तय नहीं करती
अपनी दिशा
हवा का रुख
ही करता है विवश
निश्चित दिशा
की ओर उसकी उड़ान
और उड़ान की गति
होती है
किन्हीं हाथों में .
 
समय के थपेड़े  
और
परिस्थितियां
ही तय करते हैं
हमारे जीवन की दिशा
और नियंत्रित होती है
गति
किन्हीं हाथों से .
 
खास अवसरों पर
लड़ाए जाते हैं
पेंच
मनोरंजन के लिए
जो पतंग से ज्यादा
उनके मालिकों के बीच
होते हैं
शीतयुद्ध जैसे . 
 
पतंग से
नहीं पूछता कोई
कि  कैसा लगता है उसे
जब लड़ाया जाता है
मन बहलाव के लिए
अपना वर्चस्व दिखाने के लिए .
 
डोर चाहे
कितनी भी मजबूत
क्यों न हो
कटना ही उसकी
नियति है 
 
रंग बिरंगी
पतंगों के
भाग्य की
विडंबना ही है कि
उन्हें  खुद नहीं पता 
कि कटने के बाद 
गिरेंगी किसके आँगन 
या फिर किसी 
तरू शाख पर 
झूलती रहेंगी 
चिंदी चिंदी होने तक .  

Sunday, November 13, 2011

तुलसी


चित्र साभार गूगल 


तुलसी सूरज की आग तपे 
आंधी की भी  मार सहे  
जब आये बौराया बादल 
उसकी भी बौछार गहे

तिलक लगाते वंदन करते 
हर रोज परिक्रमा भी भरते 
लेकिन फिर रह जाती अकेली 
चौरा चौखट से दूर ही रखते 

साक्षी है सुख दुःख की 
पर उसके कुछ हाथ नहीं 
बस आँगन दुनिया उसकी
और कोई उसके पास नहीं 

निर्मल गोधूली जब होती
बाती - दीया करें बातें 
तब भी वह बाट जोहती 
कैसे कटे लम्बी रातें 

घनघोर निशा की वीरानी
इन्तजार में ही कट जाती
आती जब प्रथम किरण  
सारा विषाद हर ले जाती .