Tuesday, November 22, 2022

 

ख्वाहिशें 


ख्वाहिशों का मोहल्ला

बहुत बड़ा होता है 

बेहतर है, मुड़ जाएँ  हम 

जरूरतों की गली में  | 


जरूरतों की गली  

के उस छोर पर 

कहीं मिल न जाए 

कोई खोई सी ख्वाहिश 

इन्तजार में  | 


जरूरतों की डोर 

तो है अपने हाथ 

कभी थोड़ी सी ढील 

कभी कसाव जरा सा  | 


ख्वाहिशें हैं इक 

ख्वाब खूबसूरत सा 

गर हो जाए मुकम्मल 

लगे सारा जहाँ अपना सा  | 


ख्वाहिशों को भी 

है हक़ कि नजरों में आए 

ना कि दफ़न हो जाए 

किसी के दरिया ए दिल में  |


ख्वाहिशें भी 

बेहद जरुरी हैं

गर ये न हो हमसफ़र 

तो जिंदगी अधूरी है  |  


ए हुजूर,

यूं मुँह न मोड़िए 

इन ख्वाहिशों से 

ये तो अपना ही साया है 

इनसे नाता तो जोड़िए  | 

        *****  

 

4 comments:

  1. गहन भाव लिए सुंदर अभिव्यक्ति।
    सादर।

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  2. वाह!बहुत खूब ।

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  3. सुंदर ! जरूरतें पूरी करने के बाद ही ख्वाहिशों की बारी आती है, अक्सर जरूरतें ख्वाहिशों पर हावी हो जाती हैं।

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