धवल दूध सा उज्जवल मुख
घुंघराली लट है खेल रही
नैनो में छाई है शोखी
मुस्कान अधर पर तैर रही ।
तुम हो प्रियतम मेरे
कहते आती है लाज मुझे
मैं बनूँ तुम्हारी प्रियतमा
सिहरन सी आती है मुझे ।
पंखुरियों का महा सैलाब
ले जाये बहा मझधार में
नए वर्ष की है आरजू
खुशबुओं का झंझावात
रच बस जाये तुम्हारे संसार में ।
"मैं बनूँ तुम्हारी प्रियतमा
ReplyDeleteसिहरन सी आती है मुझे ।"
महादेवी वर्मा कि कविता से भाव आ रहे हैं... अपने प्रियतम का बहुत खूब वर्णन किया है आपने... आज कल की कविताओं में कहाँ दिख रहे हैं ऐसे भाव... ऐसी गीताक्त्मा... रोमांस भरे गीत को इक स्वर मिले... इक तस्वीर मिले... इक साथी मिले...