अपने सपनो के
बनाती हूँ पंख
उड़ चलो तुम
सात समंदर पार ।
अपनी आँखों की
बनाती हूं ज्योति
बढ़ चलो तुम
शिखर की ओर ।
अपने भावों की
बनाती हूं पतवार
कर लो तुम
मन सागर पार ।
अपने गीतों में
सुनाती हूं सन्देश
घूम आओ तुम
परियो के देस ।
अपने ह्रदय पुष्प
बिछाती हूं मैं
कदम बढाओ तुम
मेरे चन्दन वन में ।
अपनी बाहों का एक बार
बना लो झूला
झूल जाऊं मैं बन मोरनी
मन में सावन का मेला ।
आपकी कविता पढ़ने पर लू में शीतल छाया की सुखद अनुभूति मिलती है।
ReplyDeleteखूबसूरत भाव दर्शाती बढ़िया कविता...बधाई
ReplyDelete"अपने हाथों का एक बार
ReplyDeleteबना लो झूला
झूल जाऊं मैं मोरनी बन"
अति सुंदर
अपनेपन से सजाती हूँ,
ReplyDeleteतुम्हारे हर अंग को,
अब तो मेरे रंग में बस जाओ।
bhaut sunder baaten
ReplyDeleteबहुत भावपूर्ण!
ReplyDeleteखूबसूरत रचना लगी, बधाई ।
ReplyDeleteअपनी पोस्ट के प्रति मेरे भावों का समन्वय
ReplyDeleteकल (23/8/2010) के चर्चा मंच पर देखियेगा
और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा।
अपनी पोस्ट के प्रति मेरे भावों का समन्वय
ReplyDeleteकल (23/8/2010) के चर्चा मंच पर देखियेगा
और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com
यह चकित करती कविता है। ठेठ जमीनी अंदाज में हैं भावावेग से भरी कविता। एक संवेदनशील मन की निश्छल अभिव्यक्तियों से भरा-पूरा है। बधाई!
ReplyDeleteकाश ये सारी इच्छाएं पूरी हो जाये तो ये कविता सफल हो जाये.
ReplyDeleteसुंदर निर्मल भाव.
मनोज जी से सहमत
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ...भाव प्रधान रचना
ReplyDeleteअपने सपनो का
ReplyDeleteबनाती हूँ पंख
उड़ चलो तुम
समंदर पार
sapno ka pankh , poori duniya kee udaan