ऐ चन्दा ! तुम आज रात
हमसे मिलने आ जाना
चाँदी सी धवल डोरियाँ
आँगन में बिसरा जाना ।
सूनी रातों के साक्षी तुम
हमें निहारा करते हो
बैरन बदली की ओट ले
कुछ समझाया करते हो ।
नागिन सी काली रात
काटे से नहीं कटती है
आओ हम तुम बतलाएं
गमगीन है वो भी कहती है ।
मेरा यह पैगाम तुम्हें
उन तक पहुँचाना ही होगा
याद में उनकी मीरा हो गई
अब तो आना ही होगा ।
तारों की बारात लिए
तुम कितना इतराते हो
रंगहीन जीवन पर मेरे
क्या आंसू नहीं बहाते हो ।
ताप विरह की अधिक सताए
थोड़ी शीतलता भर देना
मिलूं जब अपने साजन से
मुट्ठी भर मादकता दे देना ।
"ताप विरह की अधिक सताए
ReplyDeleteथोड़ी शीतलता भर देना
मिलूं जब अपने साजन से
मुट्ठी भर मादकता दे देना ।"... बहुत दिनों बाद आपके ब्लॉग पर नई कविता आये है... और ए़क सुंदर कविता... खास तौर पर अंतिम पंक्तियाँ... चाँद से मादकता मांगना... नया प्रयोग है... शुभकामनाओं सहित
मेरा यह पैगाम तुम्हें
ReplyDeleteउन तक पहुँचाना ही होगा
याद में उनकी मीरा हो गई
अब तो आना ही होगा ।
virah aur yaad ke bhav ko bahut umda dhang se prastut kiya gaya hai...
मेरे भाव की कविता रोमानी भाव बोध को दर्शाती है.कवि का नाम क्या है?अच्छी कविता है .बधाई.
ReplyDeleteकविता अच्छी लगी।
ReplyDeletekhoobsurat soch
ReplyDeleteबहुत लाजवाब
ReplyDeleteसूनी रातों के साक्षी तुम
ReplyDeleteहमें निहारा करते हो
बैरन बदली की ओट ले
कुछ समझाया करते हो ।
......sunder prastuti...
कई रंगों को समेटे एक खूबसूरत भाव दर्शाती बढ़िया कविता...बधाई
ReplyDeletebehad romantic,behtareen imagery,sunder bhaw sampreshan.
ReplyDeleteachchi lgi rachnaa
ReplyDeleteताप विरह की अधिक सताए
ReplyDeleteथोड़ी शीतलता भर देना
मिलूं जब अपने साजन से
मुट्ठी भर मादकता दे देना ।
sunder pranay , achcha virah chitran kiya hai ,
adhuwad