अमराई के झुरमुट में
कोकिल गाये मीठा कितना
पथिकों के पद थम जाए
आमों में भरती रस कितना ।
मौसम की पहली बारिश
उसकी याद दिलाती है
तू क्या जाने पगली कोयल
मन कितना तड़पाती है ।
कंठ में रहे छिपाए
भरपूर कसक का प्याला
बैरन तुम बिरहन की
परदेश बसा है मतवाला ।
कारी कोइलिया
बसो मोरे अंगना
कुहू कुहू करना
जब आयेंगे सजना ।
pyaari koyal ki kook dil mein utar gai
ReplyDeleteकूक लगती
ReplyDeleteहूक है
मन में बसी है।
......तू क्या जाने पगली कोयल
ReplyDeleteमन कितना तड़पाती है ।
sunder rachna....prabhvshali panktiyan.......