लिखने जो बैठे , अक्षर धुंधला गए
क्या लिखें, किस पर लिखें
हम ये धोखा खा गए ।
भाव कुछ आता नहीं
ठेंगा दिखाती है लेखनी
पेपर भी है मायूस
मेरी जुबानी ये मेरी कहानी ।
शर्मिंदा हों किस किस पर
खुद पर या जज्बातों पर
जो न रह सके खामोश
लरजकर लबों पर आ गए ।
न थे तुम ऐसे
न कभी सोचा था हमने
कैसा तूफान था, कि
शराफत छोड़ दी हमने ।
चल रहा अंतर में द्वन्द
पूरे दिन और रात है
खुद की है खुद से लड़ाई
जीत खुद की और खुद ही की हार है ।
इसका प्रायश्चित करें कैसे
जो हमने , निज तज भूल की
समेटे अपने डैनों को , कि
मुक्त उड़ने की भूल की ।
नादाँ इतने भी नहीं थे हम
जो मन को पढ़ न पाए हम
हुई है हमसे गुस्ताखी
कि माफ़ खुद को कर पाएंगे हम ।
Monday, January 18, 2010
Thursday, January 14, 2010
जन्मदिन मुबारक
शुभ प्रभात , शुभ बेला
आज का दिन कितना अलबेला
आज तुम्हारी सालगिरह
है लगा दुआओं का मेला ।
सब कहते हैं, खूब जियो
आगे बढ़ो , बढ़ते चलो
दिन दुनी, रात चौगुनी
कामयाबी हासिल करो ।
अनगिनत आयें वसंत
इस जीवन की फुलवारी में
पतझड़ से न हो नाता
सदाबहार की क्यारी में ।
दिन खिलें पलाश
रातें रातरानी सी महके
भोर हो इन्द्रधनुष सा
शामें रंगीन सितारों सी बहके ।
दुःख का कोई भी कतरा
तुम्हे छू न जाये
सुख का सावन सदा
रिमझिम रिमझिम बरसाए ।
यादों की बारात लिए
तुम आगे बढ़ते जाना
गर मिले , कहीं सुस्ताना
पीछे मुड़कर , एक नजर देखते जाना ।
हम होंगे कहीं पर
दूर खड़े, राह तुम्हारी तकते से
तुम खड़े शिखर पर, और
हम सजदा करते से ।
आज का दिन कितना अलबेला
आज तुम्हारी सालगिरह
है लगा दुआओं का मेला ।
सब कहते हैं, खूब जियो
आगे बढ़ो , बढ़ते चलो
दिन दुनी, रात चौगुनी
कामयाबी हासिल करो ।
अनगिनत आयें वसंत
इस जीवन की फुलवारी में
पतझड़ से न हो नाता
सदाबहार की क्यारी में ।
दिन खिलें पलाश
रातें रातरानी सी महके
भोर हो इन्द्रधनुष सा
शामें रंगीन सितारों सी बहके ।
दुःख का कोई भी कतरा
तुम्हे छू न जाये
सुख का सावन सदा
रिमझिम रिमझिम बरसाए ।
यादों की बारात लिए
तुम आगे बढ़ते जाना
गर मिले , कहीं सुस्ताना
पीछे मुड़कर , एक नजर देखते जाना ।
हम होंगे कहीं पर
दूर खड़े, राह तुम्हारी तकते से
तुम खड़े शिखर पर, और
हम सजदा करते से ।
Tuesday, January 5, 2010
ऑफिसर
अफसर एक ऐसा मैंने देखा
जैसा न तुमने , न हमने देखा
प्रथम दिन जो उठाई शपथ
कसम थी निभाए उसे अंत तक ।
काम ही काम, बस कुछ न सुझाये
नियम के पक्के, काम ही भाये
आये थे बाबू , अफसर ही जायेंगे
उनके काम के सब गुण ही गायेंगे ।
आते ही काम, दिन भर बस काम
घर और दफ्तर , काम ही काम
है साथी बनीं , बस यही फाईलें
गहराया हुनर जिनमें , है फाईलें ।
हैं सरकारी अफसर , न आराम धुन लागी
उनको तो थी बस, काम धुन लागी
न उम्र का तकाजा , न अपना स्टेटस देखा
देखा तो बस, बैठक का एजेंडा देखा ।
दफ्तर में हो रेशो , शतप्रतिशत
इसके आलावा चाहे जीरो प्रतिशत
ये था उनका डिवोशन ,थी उनकी ये मेहनत
शिखर पर ले गयी , उनकी ये फितरत ।
जैसा न तुमने , न हमने देखा
प्रथम दिन जो उठाई शपथ
कसम थी निभाए उसे अंत तक ।
काम ही काम, बस कुछ न सुझाये
नियम के पक्के, काम ही भाये
आये थे बाबू , अफसर ही जायेंगे
उनके काम के सब गुण ही गायेंगे ।
आते ही काम, दिन भर बस काम
घर और दफ्तर , काम ही काम
है साथी बनीं , बस यही फाईलें
गहराया हुनर जिनमें , है फाईलें ।
हैं सरकारी अफसर , न आराम धुन लागी
उनको तो थी बस, काम धुन लागी
न उम्र का तकाजा , न अपना स्टेटस देखा
देखा तो बस, बैठक का एजेंडा देखा ।
दफ्तर में हो रेशो , शतप्रतिशत
इसके आलावा चाहे जीरो प्रतिशत
ये था उनका डिवोशन ,थी उनकी ये मेहनत
शिखर पर ले गयी , उनकी ये फितरत ।
सर्दी
कोहरे के आलिंगन में
है भोर ने आँखे खोली
चारों ओर देख कुहासा
न निकली उसकी बोली ।
सरजू भैया मिलें कहीं
तो उनसे सब बोलो
क्यों ओढ़े हो बर्फ रजाई
अब तो आंखे खोलो ।
दर्शन दो, हे आदित्य
जन जीवन क्यों ठहराया है
जड़ चेतन सब कंपकंपा रहे
कैसा कहर बरपाया है ।
नरम धूप का वह टुकड़ा
गुनगुनी सी कितनी भली लगे
फैला दो अपना उजास
चराचर को भी गति मिले
करूँ किसको मैं नमस्कार
तुम तो बस छिपकर बैठे हो
करूँ किसको अर्ध्य अर्पण
तुम तो बस रूठे बैठे हो ।
रक्त जम गया है नस में
पल्लव भी मुरझाया है
डोर खींच ली जीवन की
निर्धन का हांड कंपाया है ।
इस मौसम में एक सहारा
बस अमृत का प्याला
लबालब जिसमें 'चाय' भरी
हो साकी, कोई पीने वाला ।
है भोर ने आँखे खोली
चारों ओर देख कुहासा
न निकली उसकी बोली ।
सरजू भैया मिलें कहीं
तो उनसे सब बोलो
क्यों ओढ़े हो बर्फ रजाई
अब तो आंखे खोलो ।
दर्शन दो, हे आदित्य
जन जीवन क्यों ठहराया है
जड़ चेतन सब कंपकंपा रहे
कैसा कहर बरपाया है ।
नरम धूप का वह टुकड़ा
गुनगुनी सी कितनी भली लगे
फैला दो अपना उजास
चराचर को भी गति मिले
करूँ किसको मैं नमस्कार
तुम तो बस छिपकर बैठे हो
करूँ किसको अर्ध्य अर्पण
तुम तो बस रूठे बैठे हो ।
रक्त जम गया है नस में
पल्लव भी मुरझाया है
डोर खींच ली जीवन की
निर्धन का हांड कंपाया है ।
इस मौसम में एक सहारा
बस अमृत का प्याला
लबालब जिसमें 'चाय' भरी
हो साकी, कोई पीने वाला ।