शुभ प्रभात , शुभ बेला
आज का दिन कितना अलबेला
आज तुम्हारी सालगिरह
है लगा दुआओं का मेला ।
सब कहते हैं, खूब जियो
आगे बढ़ो , बढ़ते चलो
दिन दुनी, रात चौगुनी
कामयाबी हासिल करो ।
अनगिनत आयें वसंत
इस जीवन की फुलवारी में
पतझड़ से न हो नाता
सदाबहार की क्यारी में ।
दिन खिलें पलाश
रातें रातरानी सी महके
भोर हो इन्द्रधनुष सा
शामें रंगीन सितारों सी बहके ।
दुःख का कोई भी कतरा
तुम्हे छू न जाये
सुख का सावन सदा
रिमझिम रिमझिम बरसाए ।
यादों की बारात लिए
तुम आगे बढ़ते जाना
गर मिले , कहीं सुस्ताना
पीछे मुड़कर , एक नजर देखते जाना ।
हम होंगे कहीं पर
दूर खड़े, राह तुम्हारी तकते से
तुम खड़े शिखर पर, और
हम सजदा करते से ।
बहुत खुश नसीब होगा वो जिसके जन्म दिन पर लिखी गई है इतने भाव से कविता.. आपने जीवन के सभी रंग, सभी खुशिया, सफलता, शिखर की कामना की है उसके लिए... लेकिन उस से इतनी दुरी क्यों... जब वो सफलता के शिखर पर हो तो आप उसके साथ क्यों नहीं ! ये समझ नहीं आया.... ख़ुशी भरे इस गीत में दर्द की टीस भी है... फिर भी ... आपके उस अदृश्य को मेरी ओर से जन्म दिन की असीम शुभकामना... और आपको भाव भरे इस गीत के लिए बधाई...
ReplyDeleteबधाई !
ReplyDeleteजन्मदिन की !
उनको जिनका है !
कविता भी अलबेली है!
बहुत सुंदर भाव को शब्दरूपी अलंकार में टांक दिया है।
ReplyDeleteबहोत ही सुंदर अभिव्यक्ति
बहुत अच्छे शब्द हैं जो अंतरात्मा के बात कहते हैं
ReplyDelete