खत
वो खत जो तूने
कभी लिखा ही नहीं
मैं रोज बैठकर
उसका जवाब लिखता हूँ |
याद आते हैं
वो सुनहरे लम्हे
मैं बंद पलकों में
उन्हें फिर से जी लेता हूँ |
मिले थे जब
हम पहली बार
मैं समंदर किनारे
ख्यालों में ही टहल आता हूँ |
डायरी के पन्नों
में वो सूखा गुलाब
आज भी मेरा
तन मन महका जाता है |
गुजारिश है मेरी
खत लिखना मुझे
जिसका जवाब मैं
हर रोज तुम्हें लिखता हूँ |
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