रामलला
अपनी ही माँ
को "माँ " पुकारने
के लिए
माँगा जा रहा है
तुमसे तुम्हारे
जन्म का प्रमाण ।
कितने डी एन ए टेस्ट
से गुजरोगे
अपने ही घर में
आने के लिए
पार करनी होगी
कितने निर्दोषों के
रक्त की वैतरणी
जिन्हें तुम्हारे नाम पर
चढ़ा दिया गया बलि ।
सूर्यवंशियों के
शौर्य में नहीं है
सूर्य की चमक
शांत सरयू भी
नहीं दे पा रही
कोई साक्ष्य
जहां जल समाधि
ली थी तुमने ।
फैसले की
नंगी कटार
लटकी है
तुम्हारे सिर पर
ठीक उसी तरह
जैसे ली थी तुमने
अग्नि-परीक्षा
सीता की ।
कभी रखने को
पिता का वचन
माँ के
एक इशारे पर
काटा था वनवास
आज फिर
भोगना है तुम्हें
निर्वासन
तय नहीं जिसकी
अवधि ।
लेकिन पुरुषोत्तम
ना तो तब
मानस के ह्रदय से
निर्वासित हुए थे तुम
ना ही
अब हो पाओगे ।
बेहद भावप्रवण प्रस्तुति।
ReplyDeleteखूबसूरत यादों को खूबसूरती से सहेजा है ...बहुत सुन्दर
ReplyDeleteभावमय
ReplyDeleteसूर्यवंशियों के
ReplyDeleteशौर्य में नहीं है
सूर्य की चमक
शांत सरयू भी
नहीं दे पा रही
कोई साक्ष्य
जहां जल समाधि
ली थी तुमने ।
adbhut bhaw sanyojan, vatvriksh ke liye bhejen
मनि बिनु फनि जिमि जल बिनु मीना ।
ReplyDeleteमम जीवन तिमि तुम्हहिं अधीना ।
जैसे मणि के बीना सांप और जल के बिना मछली नहीं रह सकती, वैसे ही मेरा जीवन आपके अधीन रहे, आपके बिना न रह सके ।
बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
स्वरोदय विज्ञान – 10 आचार्य परशुराम राय, द्वारा “मनोज” पर, पढिए!
बहुत भावपूर्ण रचना ...
ReplyDeleteसामयिक और सटीक ..इतनी सशक्त काव्यात्मक भावाव्यक्ति ...पढ कर अच्छा लगा
ReplyDeleteमार्मिक, वह भी न्याय प्रक्रिया से।
ReplyDeleteबहुत मार्मिक और सटीक रचना.
ReplyDeletebhaavpurn kavita hai, lekin arth par jab soche to aastha ke bhaav hain aur doshaaropan. aastha jiski bhi jismein ho uske liye utni hin mahatwapurn hoti. kan kan mein base hain raam fir ek hin jagah kyon maane? fir bhi... shubhkaamnaayen.
ReplyDeleteजबरदस्त एवं उम्दा रचना...
ReplyDeleteकलयुग का चरम !!!! सशक्त भावपूर्ण रचना !
ReplyDelete@जेन्नी शबनम
ReplyDeleteजहाँ आस्था है वहाँ दोषारोपण हो ही नहीं सकता .कण कण में ईश्वरीय उपस्थिति ही हमारी सनातन सोच का आधार है .ऐसा कहकर रामपति जी ने किसी पर कोई दोष कहाँ लगाया है .
सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeletenirmal ji,
ReplyDeleteyahi to maine bhi kaha hai ki aastha ki jab baat hoti to usme koi tark nahin hota. ram lalla ka janm kis sthan par hua ye tark ki baat nahin, sampurn ayodhya raam janmbhoomi hai. usi prakar dusre sampradaay kisi se saboot nahin maang rahe lekin aastha unhe bhi apne dharm ke prati waisi hin hai. bas hum sabhi ko apni soch ko vyapak karna hoga.
saabhar.