बीत गया पाख अँधियारा
फैला दो विश्व उजियारा
चाँदी के चश्मे से देखो
ये जग है कितना प्यारा ।
चाँद और सूरज दो भाई
करते सृष्टि की अगुवाई
सब पर पहरा देते मौन
कौन जागता सोता कौन ।
चंदा मेरे हमराज तुम्हीं
सखा मेरे सरताज तुम्हीं
बोलो भी क्यों रूठे हो
इतनी दूर जा बैठे हो ।
झरोखे पर आ बैठूं मैं
साँझ न काटे कटती है
कब आओगे निर्मोही
कि गंगा जमुना बहती है ।
पल बीते और दिवस गए
जन्मों तक करूँ अनुराग
नाथ मेरे तक कब पहुंचेगी
इस व्याकुल ह्रदय की पुकार .
चाँद तुम इतनी दूर हो क्यों
क्यों शीतलता में तड़प भरी
पागल प्रेमी के साथ हो क्यों
क्यों प्रेम में इतनी अगन भरी।
पल बीते और दिवस गए
ReplyDeleteजन्मों तक करूँ अनुराग
नाथ मेरे तक कब पहुंचेगी
इस व्याकुल ह्रदय की पुकार .
वाह ,वाह -बधाई भावप्रवण कविता के लिए .
आपकी रचना में भाषा का ऐसा रूप मिलता है कि वह हृदयगम्य हो गई है।
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
शैशव, “मनोज” पर, आचार्य परशुराम राय की कविता पढिए!
चंदा मेरे हमराज तुम्हीं
ReplyDeleteसखा मेरे सरताज तुम्हीं
बोलो भी क्यों रूठे हो
इतनी दूर जा बैठे हो ।
Best lines... Congrats...
ओह....अतिसुन्दर...
ReplyDeleteमन मोह लिया आपकी इस अनुपम रचना ने....
भाव प्रवाह शब्द संयोजन...सब लाजवाब हैं...
बहुत ही सुन्दर इस रचना को पढवाने के लिए बहुत बहुत आभार...
manbhaawan prastuti, shubhkaamnaayen.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना ...
ReplyDeleteचंदा मेरे हमराज तुम्हीं
ReplyDeleteसखा मेरे सरताज तुम्हीं
बोलो भी क्यों रूठे हो
इतनी दूर जा बैठे हो ।
waah
सुन्दर रचना!
ReplyDeleteहिन्दी के प्रचार, प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है. हिन्दी दिवस पर आपका हार्दिक अभिनन्दन एवं साधुवाद!!
बहुत सुन्दर भाव्।
ReplyDeleteप्रेम की अग्नि बड़ी तीक्ष्ण होती है।
ReplyDelete... bahut sundar ... prasanshaneey rachanaa, badhaai !!
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