बर्फीली घाटियाँ
फूलों की वादियाँ
शोखी की रहनुमाई
यौवन लेता अंगड़ाई ।
फिरती है एक लड़की
कुछ भूली बिसराई
ढूंढ़ती है यादें
है बहुत घबराई ।
खामोश है शिकारे
सूना पड़ा संगीत
केवट है पुकारे
न आये मनमीत ।
धरती का ये स्वर्ग
असुरों ने है घेरा
कहाँ पायें शरण
कहाँ डाले डेरा ।
क्यारी केसर की
महकना है भूली
कली शालीमार की
फिर से न फूली ।
आतंक और जंग
पैठ है लगाये
बारूद की गंध
हर ओर गंधाये ।
लाज पर पहरा नहीं
रक्षित नहीं है आबरू
सब तरफ शमशीर है
जल रहा कश्मीर है ।
खामोश है शिकारे
ReplyDeleteसूना पड़ा संगीत
केवट है पुकारे
न आये मनमीत ।
खून खोल उठता है जब चंद दश्त-गर्दो के हाथो कश्मीर को नेस्तोनाबुत होते देखता हूँ...
बहुत मार्मिक और सार्थक रचना ...
ReplyDeleteभावनात्मक रचना..
ReplyDeleteसच में कश्मीर जल रहा है।
ReplyDeleteएक सच्चे, ईमानदार कवि के मनोभावों का वर्णन। बधाई।
ReplyDeleteआतंक और जंग
ReplyDeleteपैठ है लगाये
बारूद की गंध
हर ओर गंधाये ।
हकीकत तो यही है ... यह कुहराम कब रूकेगा
बहुत दर्द है इस रचना में और काश्मीर की दुरावस्था का एकदम यथार्थ चित्रण है ! एक ईमानदार अभिव्यक्ति के लिये बधाई !
ReplyDeleteभावपूर्ण रचना के लिये बधाई !
ReplyDeleteबहुत देर से पहुँच पाया ....माफी चाहता हूँ..
कश्मीर जल रहा है
ReplyDeletehttp://padchihna.blogspot.com/2010/11/blog-post.html