व्याकुल है जग सारा
ठौर नहीं है घन दल का
मेरा मन भी तड़प रहा
सन्देश न आया साजन का ।
बदरा आये बौछार न आई
घुमड़ घुमड़ लौटे बौराए
कोई तो उनको रोके पूछे
प्यासी धरती से क्यों रूठे ।
तुम्हारी आस में रहते सब
सूनी सूनी मेरी गलियां
आकर बरस भी जाओ अब
भर आई हैं मेरी अंखियाँ ।
सूना सावन सूनी रैना
झूलों का संगीत है सूना
रिमझिम की झड़ी उदास
इन्द्रधनुष में नहीं उजास ।
मतवाले बादल मस्ती में
हवा बावरी टिकने ने दे
अमृत छलकाते तुम आना
पी के देस बरस जाना ।
देख जो पाऊं मैं उनको
व्यथित मन को आये करार
उमड़ते कजरारे मेघा
बरस भी जाओ मूसलाधार ।
प्यास बुझाते हो सबकी
नेह वृष्टि हम पर कर दो
शांत हों विरह के ताप
रसमय शीतलता भर दो ।
बहुत बढ़िया.
ReplyDeleteप्रकृति के माध्यम से मन के भावों को मूर्त रूप देती सुन्दर रचना.
ReplyDeleteविरह और प्रकृति के माध्यमों का पुराना सम्बन्ध रहा है। कोई न कोई आपकी बात मन तक पहुँचा ही देगा।
ReplyDeleteबहुत सुंदर भाव युक्त कविता
ReplyDeleteअच्छा है कभी इंतजार के भ्रम में भी रहना. वरन आज कल तो कोई किसी का इंतजार नहीं करता
ReplyDeletebahut hi badhiyaa.....
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