गिरा गगन से जल मोती
जमीं पे आके मिला फूल से
फूल ने पहले पंख बिठाया
फिर अपने उर कंठ लगाया
दोनों मिल बतियाने लगे
मंद मंद मुस्काने लगे
ओस ढुलक गई धीरे से
साथ छूट गया हीरे से
अरुणिमा पूरब में लहराए
धीमे बहती ठंडी हवाएं
खिला कुसुम मध्यम मुस्काए
उस पर ओस की बूंदे छाये
कब तक जी पायेगी बूँद
पत्ते के आलिंगन में
बस चुकी है कब की
मेरे ही व्याकुल मन में
पल भर को सजना
शरमाई शबनम की तरह
एक ही क्षण में बिखरना
ठुकराई दुल्हन की तरह
कब तक यूं ही चलेगा
सजना और बिखरना
कभी ऐसा भी होगा
सिर्फ उनके लिए संवरना
पंखुरियों पर प्यार जताना
ओस के दर्पण में तुम आना
मेरे जीवन की है आकांक्षा
निर्मल बूंदों की करूँ प्रतीक्षा
nice
ReplyDeletekhoobsurat bhaw
ReplyDeleteओस की शीतलता व ताज़गी है आपकी कविता में।
ReplyDeleteपल भर को सजना
ReplyDeleteशरमाई शबनम की तरह
एक ही क्षण में बिखरना
ठुकराई दुल्हन की तरह
अद्भुत!
पंखुरियों पर प्यार जताना
ReplyDeleteओस के दर्पण में तुम आना
बहुत खूबसूरत .. प्रकृति के बहुत करीब
बेहद ख़ूबसूरत और उम्दा
ReplyDeleteप्रकृति के बहुत करीब
ओस की बूंद का सुख्स्मता से अध्यन किया है और अच्छा बिम्ब भी रचा है !
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