तस्वीर बसी इन आँखों में
जिधर देखती तुम ही हो
छवि निरंतन तैर रही
फिर क्योंकर इतना रूठे हो ।
गुजर गए कितने सावन
तेरी आस में याद नहीं
बेकरारी ये भी मनभावन
अपनी कुछ परवाह नहीं ।
बाहों की रेशम पुष्प डाल
कुछ अनमन और गुमसुम सी
भाग्यविधाता क्या दोष मेरा
मैं क्यों हूँ खोई खोई सी ।
सपनों में तस्वीर बनाऊं
नित लगती है नई नई
उससे घंटों बातें करती
मन भरता है कहीं नहीं ।
तस्वीर में उतरा अक्स मेरा
मानो मेरी परछाईं है
लगता नहीं दूर हो तुम
यादों की बदरी छाई है ।
बहुत ही सुन्दर भाव।
ReplyDeleteभावमयी रचना.........."
ReplyDeleteबाहों की रेशम पुष्प डाल
ReplyDeleteकुछ अनमन और गुमसुम सी
भाग्यविधाता क्या दोष मेरा
मैं क्यों हूँ खोई खोई सी ।
umda rachna hai...
I would be obliged if you would check my interpretation of "tasverein "
http://rajatnarula.blogspot.com/2010/01/tasveerein.html
"तस्वीर में उतरा अक्स मेरा
ReplyDeleteमानो मेरी परछाईं है
लगता नहीं दूर हो तुम
यादों की बदरी छाई है । "
आम तौर पर आपकी कविताओं की अंतिम पंक्तिया बेहद जज्बाती होते हैं.. दिल को छु जाते हैं... सुंदर कविता.. बहुत बढ़िया !