आलता लगे पांवों से
जब लांघी थी
तुमने
पहली बार
मेरे घर की
चौखट
लगा था मानो
महालक्ष्मी साक्षात्
चलकर आई है
मेरे आँगन में
क्षीरसागर से ।
रुनझुन रुनझुन
तुम्हारी
पाजेब की
घोलती है कानों में
मिसरी या
तानसेन ने
मेरे द्वार
छेड़ दिया हो कोई
मधुर राग
तुम्हारे
गेसुओं का मोगरा
महका गया था
मेरी सांसे
घटा बन
मेरी रातों पर
छा गया था
तुम्हारे मदभरे
नयनों का कजरा ।
बादलों के बीच
दूज
के चाँद
सा चेहरा
तुम्हारा
जब घूँघट की आड़
से निहारा था तुमने
मुझे
और पलकें
बोझिल हो गई
थी तुम्हारी
लाज से ।
तुम आई
मेरे जीवन में
लगा
एक ही पल में
जी ली हैं
सदियाँ मैंने
तुम्हारे साथ ।
Jeewan jhalakataa hai is kavitaa me. aanandam
ReplyDeletevery good.
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