सतरंगी पालकी पर
इठलाती है फिरती
है कौन यह
अरे !!! ये तो है तितली ।
किस चित्रकार की
तूलिका से निकली
फूलों से करती आलिंगन
बागों में उड़ती मनचली ।
किस कवि की कल्पना
भंगिमा किस भाव की
किस शिल्पी की प्रतिमा
रचना किस रचनाकार की ।
शोख सी चंचल हो तुम
नाजों से ज्यादा नाजुक हो
स्पर्श से होती हो आहत
बढ़कर सुरा से मादक हो ।
जब वसंत की अगुवाई
करती मंद मलय पुरवाई
तुम्हे आमंत्रण देती अमराई
तुम आती कुछ इतराई ।
फूलों से यह फूल झड रहे
फूल तुम्हें अर्पण कर दें
सबके सब तेरी राह निहारें
खुशबू का सजदा कर दें ।
मेरे भी मन उपवन में
पल दो पल रहो ठहर
ऐसी रंगीनी रंग दो
रंगरेज भी जाए सिहर ।
titli ke rangeen swaroop ki tarah hi shabd shabd manohari hain
ReplyDeleteकिस कवि की कल्पना
ReplyDeleteभंगिमा किस भाव की
किस शिल्पी की प्रतिमा
रचना किस रचनाकार की ।
very nice composition, incense at its best...
brilliant...
फिर से प्रशंसनीय रचना - बधाई
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